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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में ब्लैक फंगस के लक्षणों एवं इससे बचाव पर चर्चा
करनाल। ब्लैक फंगस एक खतरनाक बीमारी जरूर है, लेकिन लाइलाज नहीं। कोरोना की तरह यह वायरस चीन से आयातित नहीं है और न ही यह छुआछूत से फैलने वाला संक्रमण है। ब्लैक फंगस एक विशेष प्रकार के फफूंदी से फैलने वाली बीमारी है जिसके जीवाणु वायुमंडल में हर जगह पाए जाते हैं। मजबूत इम्यूनिटी वाले लोगों को इसके जीवाणु नुकसान नहीं पहुंचा पाते, लेकिन कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग आसानी से इसके शिकार बन जाते हैं। अगर संक्रमण के शुरुआती चरण में ही इसकी पहचान हो जाए तो ब्लैक फंगस का शत-प्रतिशत इलाज संभव है।
उपरोक्त जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में ब्लैक फंगस के लक्षण एवं इससे बचाव के विषय पर चर्चा के दौरान उभरकर सामने आई। बीमारी के प्रति अपने जागरूकता अभियान के तहत हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान करनाल स्थित कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज स्थित ईएनटी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. विकास ढिल्लों के साथ बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने ब्लैक फंगस को भी अधिसूचित बीमारी घोषित कर दिया है। फलों और सब्जियों पर भी मौजूद रहने वाले इसके जीवाणु नाक और मुंह के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ब्लैक फंगस से करनाल में एक मरीज की मौत होने का भी समाचार है।
ऐसा क्यों है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों और मधुमेह रोगियों में ही ब्लैक फंगस के सर्वाधिक मामले पाए जा रहे हैं? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. विकास ढिल्लों ने कहा कि कोरोना हमारी इम्यूनिटी को कमजोर कर देता है। कोरोना के उपचार के दौरान मरीजों को स्टेरॉइड की दवा भी दी जाती है जो हमारे खून मैं मौजूद वाइट ब्लड कॉरपसल्स की प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है। स्टेरॉइड चाहे एनाबॉलिक हो या कोई और, हमारी इम्यूनिटी को कम करता ही है। ब्लैक फंगस कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को ही प्रभावित करता है। कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में अनियंत्रित मधुमेह के रोगी, एचआईवी मरीज, एंटी कैंसर दवाई लेने वाले लोगों व कोरोना से ठीक हो चुके लोगों के अलावा किडनी, लीवर या किसी अन्य अंग का प्रत्यारोपण करवाने वाले लोग शामिल हैं।
डॉ. विकास ढिल्लों ने बताया कि ब्लैक फंगस मिट्टी और वायुमंडल में मौजूद होता है जो काले रंग का होता है। जीभ पर काले रंग की या तालु के ऊपर सफेद रंग की परत का चढ़ जाना ब्लैक फंगस के लक्षण हैं। कवक काले और उजले दोनों रंग के होते हैं। कल्पना चावला अस्पताल में ब्लैक फंगस के अब तक 10-12 मामले सामने आ चुके हैं।
डॉ. चौहान ने पूछा कि इस बीमारी के लक्षणों को कैसे पहचाने और किस स्टेज में जाने के बाद मरीज का बचना मुश्किल हो जाता है? इस सवाल पर डॉ. विकास ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद फिर से बुखार आना शुरू हो जाए, चेहरे के एक भाग में दर्द होना शुरू हो या नाक बंद हो जाए, नाक से रक्त मिश्रित तरल पदार्थ निकलने लगे या चेहरे पर एक तरफ संवेदना महसूस होना बंद हो जाए, दांत हिलने लगे, टूटते समय काला सा पदार्थ निकले या जीभ पर काली जैसी परत जम जाए, आंखों से धुंधला या दो – दो आकृतियां दिखने लगे और चेहरे की त्वचा भी काली पड़ने लगे तो इसे ब्लैक फंगस का लक्षण समझना चाहिए। ब्लैक फंगस के रोगी अक्सर तब उपचार के लिए आते हैं जब वह सेप्टीसीमिया में जा चुका होता है। यदि शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क किया जाए तो शत-प्रतिशत इलाज संभव है।
ब्लैक फंगस के रोगियों का किस अवस्था में जाने के बाद बचना मुश्किल होता है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. विकास ने बताया कि मरीज की जब आंख खराब हो जाती है और फंगस मस्तिष्क में चला जाता है तो मामला नियंत्रण से बाहर चला जाता है। इसे ही सेप्टीसीमिया कहते हैं। यह बीमारी का अंतिम चरण होता है। ब्लैक फंगस के रोगियों का अस्पताल में डॉक्टरों की देखरेख में ही उपचार संभव है क्योंकि दवाएं नसों के माध्यम से दी जाती हैं एवं शरीर के अन्य हिस्सों पर भी कड़ी निगरानी रखनी पड़ती है।
पांच मिनट तक नाक दबाकर मुंह से सांस लें
डॉक्टर विकास ने बताया कि नाक से खून बहने या नकसीर के रोगियों को सीधा बैठकर नाक को 5 मिनट तक उंगलियों से दबाकर रखना चाहिए और मुंह से सांस लेना चाहिए। ऐसा करने से नाक से रक्त का प्रवाह रुक जाएगा और आराम मिलेगा। यह क्रिया लेट कर कदापि नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अक्सर कान खुजाने की आदत भी अच्छी नहीं है। इससे कान का पर्दा फटने या परदे में छेद होने का खतरा बढ़ जाता है।