गुरु नानक देव के दिखाए मार्ग में सांप्रदायिक कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं : ज्ञानी सूरत सिंह
प्रकाशोत्सव पर गुरु अंगद देव जी के जीवन एवं कार्यों पर रेडियो ग्रामोदय पर चर्चा आयोजित
करनाल। गुरु नानक देव जी के बाद गुरु गद्दी संभालने वाले गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को उसका वर्तमान स्वरूप प्रदान करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। एक तरफ़ जहां उन्होंने अपने अनुयाइयों की शिक्षा की तरफ़ ध्यान देते हुए पाठशालाएँ खोलने की पहल की तो वहीं दूसरी ओर उन्हें अखाड़ों में व्यायाम करने के लिए भी प्रेरित किया। दूसरे पातशाह गुरु अंगद देव जी के प्रकाशोत्सव पर रेडियो ग्रामोदय द्वारा आयोजित की गई चर्चा में ये बिंदु उभरकर सामने आए।
रेडियो ग्रामोदय के संस्थापक व ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने इस अवसर पर ज्ञानी सूरत सिंह के साथ गुरु अंगद देव जी के जीवन और कार्यों पर बातचीत की। अनेक वर्षों तक गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा घरौंडा के ग्रंथी रहे ज्ञानी सूरत सिंह ने गुरु अंगद देव के जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला।
डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि नई पीढ़ी अपने महापुरुषों से जुड़ी रहे, इसके लिए महापुरुषों की जयंतियों अथवा उनसे जुड़े अन्य अवसरों पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से उनके जीवन पर बातचीत होनी चाहिए। ओमान से पंकज शर्मा द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में ज्ञानी सूरत सिंह ने कहा कि गुरु नानक देव जी के दिखाए रास्ते में जातीय या सांप्रदायिक कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं है। गुरु साहिब ने तो खुलकर ऐलान किया था कि मनुष्य की एक ही जाति होती है। जब सब एक ही नूर से उपजे हैं तो फिर भेदभाव की गुंजाइश कहाँ बचती है?
ज्ञानी सूरत सिंह और डॉ. चौहान ने कार्यक्रम के प्रतिभागियों से रूबरू होते हुए कहा कि गुरु नानक देव जी ने ‘गुरू का लंगर’ की जो प्रथा प्रारंभ की थी, गुरु अंगद देव जी ने उसे मज़बूती प्रदान की। वह लंगर प्रथा आज विश्वभर में सिख पंथ की अनूठी पहचान बनी हुई है। आयोजन में गोंदर निवासी गुरविंदर कौर, चोरकारसा से बलबीर सिंह, पानीपत से केदार दत्त व राजेश रावल और भूना से विकास बंसल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। गुरु नानक खालसा कॉलेज करनाल के सहायक प्रोफ़ेसर जुझार सिंह ने आयोजन में तकनीकी सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम के अंत में संकल्प लिया गया कि महापुरुषों के जीवन पर चर्चा का यह सिलसिला बदस्तूर जारी रखा जाए।
बेटों के बजाय शिष्य को दी गुरु गद्दी
गुरु अंगद देव जी आध्यात्मिक रूप से पहुँचे हुए शख़्स तो थे ही, उन्होने गुरु के प्रति अपने सेवा भाव और समर्पण के बल पर गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी के रूप में भी स्वयं को स्थापित किया। कहते हैं कि गुरु नानक देव जी ने कम से कम 19 बार भाई लेहणा नाम के अपने इस शिष्य की परीक्षा ली। इन परीक्षाओं में गुरु नानक देव जी के अपने बेटे भाई लेहणा की समझ-बूझ और समर्पण के सामने अपेक्षाकृत छोटे साबित हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें गुरु की गद्दी सौंपी और अंगद देव कहकर पुकारा।