अपनी आँखों का रखे ध्यान, नेत्रदान भी है महादान
रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस पर चर्चा
करनाल। आंखों की देखभाल जरूरी है।साफ और ठंडे पानी से आंखों को नियमित रूप से धोएं और बिना जरूरत कोई दवा न लें। उचित समय पर चश्मा लगाएं और 60 वर्ष की उम्र हो जाने पर मोतियाबिंद की जांच नियमित रूप से कराते रहें..कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर लंबे समय तक निगाह गड़ाए रखना नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए हर 15-20 मिनट के बाद 10-15 सेकंड का विश्राम अवश्य लें। बचाव के ये उपाय आपको काफी हद तक नेत्र रोगों एवं नेत्रहीनता से बचा सकते हैं।
उपरोक्त विचार रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं निदेशक डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान व करनाल के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं माधव नेत्र बैंक के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. भरत ठाकुर के बीच हुई बातचीत में उभर कर सामने आए। कार्यक्रम में नेत्रदान के महत्व और प्रक्रिया को लेकर विस्तार से से बातचीत हुई।
डॉ. भरत ठाकुर ने बताया कि देश में दृष्टिबाधित लोगों में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के शिकार लोगों का अनुपात लगभग 1% है जिनकी संख्या 80 लाख के करीब है। इसके मुकाबले दोनों आंखों से दृष्टिबाधित लोगों की संख्या मात्र दो लाख है। कॉर्नियल ब्लाइंडनेस को सिर्फ कॉर्निया के प्रत्यारोपण से ही दूर किया जा सकता है जो नेत्रदान से ही संभव है। आंखों के अगले हिस्से में स्थित काली पुतली को ही कॉर्निया कहते हैं। इसे नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि कॉर्निया प्याज के छिलके जितना मोटा होता है और इसका आकार 10 मिलीमीटर का होता है।
आंखों के अगले हस्से में स्थित काली पुतली को ही कॉर्निया कहते हैं। इसे नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि कॉर्निया प्याज के छिलके जितना मोटा होता है और इसका आकार 10 मिलीमीटर का होता है।
नेत्रदान के लिए पात्र व्यक्ति कौन है और एक मृत व्यक्ति के अंगों से कितने लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है? डॉ. बीरेंद्र सिंह चौहान के इस सवाल पर डॉ. ठाकुर ने बताया कि एक मृत व्यक्ति के शरीर से कुल 11 लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है जिनमें दो लोगों को कॉर्निया का प्रत्यारोपण भी शामिल है। कॉर्निया को 6 घंटे के भीतर दान पाने वाले व्यक्ति की आंखों में प्रत्यारोपित करना होता है। इसे गंतव्य तक सड़क या वायु मार्ग से पहुंचाने के लिए कई बार ग्रीन कॉरिडोर भी बनाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि नेत्रदान के लिए आयु की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। 100 साल के व्यक्ति की आंखें भी अगर मृत्यु के समय ठीक हो, तो उसके कॉर्निया का प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
डॉ. भरत ठाकुर ने बताया बचपन में खेलते समय आंखों में लगी चोट का यदि समय पर उपचार न हो तो आगे चलकर कॉर्निया खराब होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा विटामिन-]ए की कमी से भी कॉर्निया खराब होता है। कॉर्निया कैमरे के लेंस की तरह होता है जो आंखों के सामने आने वाली आकृति को फोकस करता है। उन्होंने बताया कि भारत में कॉर्निया प्रत्यारोपण 45 वर्ष पहले आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया एवं भारत सरकार के सहयोग से शुरू किया गया था।
कार्निया प्रत्यारोण में करनाल देश में सातवें स्थान परडॉ. भरत ठाकुर ने बताया कि कॉर्निया प्रत्यारोपण के मामले में करनाल जिले का स्थान देश में सातवां है।यहां एक साल के भीतर करीब एक हजार नेत्रदान दर्ज किए जाते हैं। इसमें माधव नेत्र बैंक समेत अन्य संगठनों की भूमिका अहम है। इस नेत्र बैंक की स्थापना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सह सरकार्यवाह अरुण कुमार की प्रेरणा से की गई थी। नेत्र बैंकों का काम दानदाताओं से नेत्र लेकर उन्हें संरक्षित करना और जरूरतमंदों को उपलब्ध कराना है। उन्होंने बताया कि वैसे तो देश भर में 1100 नेत्र बैंक पंजीकृत हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 200 एक्टिव हैं। उनमें भी मात्र 80 नेत्र बैंक ऐसे हैं जो 50 से अधिक नेत्रदान करवा सकते हैं। देशभर में एक साल के भीतर करीब 20,000 लोगों को कॉर्निया का प्रत्यारोपण संभव हो पाता है। इस बीच समाजसेवी कपिल अतरेज़ा ने बताया कि नेत्रदान का संकल्प पत्र ऑनलाइन भी भरा जा सकता है।