ग्रामोदय

Health & Medical

अपनी आँखों का रखे ध्यान, नेत्रदान भी है महादान

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस पर चर्चा

करनाल। आंखों की देखभाल जरूरी है।साफ और ठंडे पानी से आंखों को नियमित रूप से धोएं और बिना जरूरत कोई दवा न लें। उचित समय पर चश्मा लगाएं और 60 वर्ष की उम्र हो जाने पर मोतियाबिंद की जांच नियमित रूप से कराते रहें..कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर लंबे समय तक निगाह गड़ाए रखना नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए हर 15-20 मिनट के बाद 10-15 सेकंड का विश्राम अवश्य लें। बचाव के ये उपाय आपको काफी हद तक नेत्र रोगों एवं नेत्रहीनता से बचा सकते हैं।

वेक अप करनाल

उपरोक्त विचार रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं निदेशक डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान व करनाल के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं माधव नेत्र बैंक के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. भरत ठाकुर के बीच हुई बातचीत में उभर कर सामने आए। कार्यक्रम में नेत्रदान के महत्व और प्रक्रिया को लेकर विस्तार से से बातचीत हुई।

डॉ. भरत ठाकुर ने बताया कि देश में दृष्टिबाधित लोगों में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के शिकार लोगों का अनुपात लगभग 1% है जिनकी संख्या 80 लाख के करीब है। इसके मुकाबले दोनों आंखों से दृष्टिबाधित लोगों की संख्या मात्र दो लाख है। कॉर्नियल ब्लाइंडनेस को सिर्फ कॉर्निया के प्रत्यारोपण से ही दूर किया जा सकता है जो नेत्रदान से ही संभव है। आंखों के अगले हिस्से में स्थित काली पुतली को ही कॉर्निया कहते हैं। इसे नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि कॉर्निया प्याज के छिलके जितना मोटा होता है और इसका आकार 10 मिलीमीटर का होता है।

आंखों के अगले हस्से में स्थित काली पुतली को ही कॉर्निया कहते हैं। इसे नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि कॉर्निया प्याज के छिलके जितना मोटा होता है और इसका आकार 10 मिलीमीटर का होता है।

नेत्रदान के लिए पात्र व्यक्ति कौन है और एक मृत व्यक्ति के अंगों से कितने लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है? डॉ. बीरेंद्र सिंह चौहान के इस सवाल पर डॉ. ठाकुर ने बताया कि एक मृत व्यक्ति के शरीर से कुल 11 लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है जिनमें दो लोगों को कॉर्निया का प्रत्यारोपण भी शामिल है। कॉर्निया को 6 घंटे के भीतर दान पाने वाले व्यक्ति की आंखों में प्रत्यारोपित करना होता है। इसे गंतव्य तक सड़क या वायु मार्ग से पहुंचाने के लिए कई बार ग्रीन कॉरिडोर भी बनाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि नेत्रदान के लिए आयु की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। 100 साल के व्यक्ति की आंखें भी अगर मृत्यु के समय ठीक हो, तो उसके कॉर्निया का प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल हो सकता है।

डॉ. भरत ठाकुर ने बताया बचपन में खेलते समय आंखों में लगी चोट का यदि समय पर उपचार न हो तो आगे चलकर कॉर्निया खराब होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा विटामिन-]ए की कमी से भी कॉर्निया खराब होता है। कॉर्निया कैमरे के लेंस की तरह होता है जो आंखों के सामने आने वाली आकृति को फोकस करता है। उन्होंने बताया कि भारत में कॉर्निया प्रत्यारोपण 45 वर्ष पहले आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया एवं भारत सरकार के सहयोग से शुरू किया गया था।

 

कार्निया प्रत्यारोण में करनाल देश में सातवें स्थान परडॉ. भरत ठाकुर ने बताया कि कॉर्निया प्रत्यारोपण के मामले में करनाल जिले का स्थान देश में सातवां है।यहां एक साल के भीतर करीब एक हजार नेत्रदान दर्ज किए जाते हैं। इसमें माधव नेत्र बैंक समेत अन्य संगठनों की भूमिका अहम है। इस नेत्र बैंक की स्थापना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सह सरकार्यवाह अरुण कुमार की प्रेरणा से की गई थी। नेत्र बैंकों का काम दानदाताओं से नेत्र लेकर उन्हें संरक्षित करना और जरूरतमंदों को उपलब्ध कराना है। उन्होंने बताया कि वैसे तो देश भर में 1100 नेत्र बैंक पंजीकृत हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 200 एक्टिव हैं। उनमें भी मात्र 80 नेत्र बैंक ऐसे हैं जो 50 से अधिक नेत्रदान करवा सकते हैं। देशभर में एक साल के भीतर करीब 20,000 लोगों को कॉर्निया का प्रत्यारोपण संभव हो पाता है। इस बीच समाजसेवी कपिल अतरेज़ा ने बताया कि नेत्रदान का संकल्प पत्र ऑनलाइन भी भरा जा सकता है।

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कोरोना से संग्राम में अग्रिम मोर्चे की योद्धा है आशा वर्कर: डॉ. चौहान

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संकट काल में हर घर तक छह बार पहुँच का दावा

करनाल। गांव में कोरोना संक्रमितों का डोर टू डोर सर्वेक्षण करना हो या होम आइसोलेशन में भेजे गए कोरोना मरीजों को दवाओं की किट पहुंचाने का काम, गर्भवती महिलाओं की जांच करानी हो या प्रसव के लिए उन्हें अस्पताल ले जाने का काम, नवजात बच्चों का टीकाकरण हो या डेंगू-मलेरिया से बचने के लिए गांव में स्प्रे कराने का काम, अपनी जान जोखिम में डालकर भी स्वास्थ्य के हर मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में खड़ी रहने वाली मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकत्रियों को सेल्यूट तो बनता ही है।

कोरोना से संग्राम में अग्रिम मोर्चे की योद्धा है आशा वर्कर

सरकार द्वारा आमजन के लिए प्रदत्त स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण कड़ी का काम करने वाली इन आशा वर्करों को अपने काम के बदले कोई वेतन नहीं मिलता। जनसामान्य के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने वाली इन मान्यता प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका अद्भुत है।
हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में आशा वर्करों के कार्यों पर चर्चा के दौरान यह टिप्पणी की। उनके साथ चर्चा में शामिल थे करनाल के जिला आशा कोऑर्डिनेटर संजीव एवं आशा वर्कर कविता। डॉ. चौहान ने बताया कि प्रति एक हजार की आबादी वाले क्षेत्र के लिए एक आशा वर्कर की नियुक्ति की जाती है। इस समय करनाल जिले में 1142 आशा वर्कर कार्यरत हैं क़रीब 40 आशा वर्करों की रिक्तियां मौजूद हैं। कोरोना काल में सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाना आशा वर्करों की बदौलत ही संभव हो पाया है।
संजीव कुमार ने स्पष्ट किया कि कोरोना के दौरान 6 बार किए गए डोर टू डोर सर्वेक्षण में संक्रमण की स्थिति का पता लगाया गया और लक्षण वाले लोगों को जांच के लिए विभिन्न अस्पतालों में भेजा गया। आशा वर्करों ने होम आइसोलेशन में भेजे गए मरीजों को सरकारी दवाओं की किट पहुंचाने का काम भी किया। संजीव ने बताया कि सर्वेक्षण के लिए सरकार की ओर से एक मोबाइल ऐप तैयार किया गया है जिसे हर आशा वर्कर को दिया गया है। इस ऐप के जरिए संक्रमित मरीजों का डाटा दर्ज किया जाता है। कविता ने बताया कि कोरोना सर्वे के दौरान आशा वर्करों को सरकार की तरफ़ से मोबाइल फ़ोन,थर्मल स्कैनर व थर्मामीटर आदि दिए गए ।

गर्भावस्था और शिशु के जन्म के बाद करती है जच्चा-बच्चा की संभाल

जिला कोऑर्डिनेटर संजीव ने बताया कि अपने निर्धारित क्षेत्र में हर निवासी तक पहुंचना आशा कार्यकर्ताओं का दायित्व है। घर हो या डेरा, आशा वर्कर हर जगह जाकर लोगों के स्वास्थ्य का जायजा लेती हैं। उन्हें अपने क्षेत्र में हुए हर जन्म एवं मृत्यु का भी पंजीकरण करना पड़ता है।संजीव ने बताया कि कोरोना महामारी फैलने से पहले आशा वर्कर गांव की महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल करती थीं। गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण करवाना, प्रसव पूर्व रक्तचाप, मधुमेह एवं एचआईवी आदि की जांच करवाना और मलेरिया एवं डेंगू से बचाव के लिए समय-समय पर गांव में दवा का छिड़काव कराना आशा वर्कर के दायित्वों में शामिल है। संजीव ने बताया कि गांव में गर्भवती महिलाओं की सूची बनाने, प्रसव से पूर्व तीन-चार बार चेकअप कराने, उनका अल्ट्रासाउंड कराने, प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लेकर जाने और डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य का जायजा लेने के लिए आशा वर्करों को कम से कम 6 बार उनके घर जाना पड़ता है।इसके अलावा जच्चा से भी प्रसव बाद पेश आने वाली परेशानियों के बारे में पूछा जाता है। कोई परेशानी होने पर आशा वर्कर एंबुलेंस बुलाकर ऐसी महिलाओं को अस्पताल ले जाती हैं। कविता ने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद से लेकर 5 वर्ष की उम्र होने तक आशा वर्करों को बच्चे की देखभाल करनी पड़ती है। उन्हें बच्चे के हर टीकाकरण के शेड्यूल का ध्यान रखना पड़ता है और बच्चे की मां को इसके लिए प्रेरित करना पड़ता है। जन्म के 1 महीने के बाद बीसीजी के टीके से लेकर 10 साल का होने तक बच्चों को टीके लगते रहते हैं। टीका लगने के बाद यदि बच्चे को बुखार आ जाए तो उसके स्वस्थ होने तक आशा वर्कर उसके स्वास्थ्य पर निगाह रखती हैं।

ऐसे नियुक्त होती है आशा वर्कर

आशा वर्करों की नियुक्ति प्रक्रिया क्या है और उनका मानदेय किस प्रकार तय किया जाता है? कुटेल निवासी एक प्रतिभागी के सवाल पर संजीव ने बताया कि गांव में एक वीएलसी कमेटी होती है जो आशा वर्करों का चयन करती है। किसी गांव में आशा वर्कर की जगह खाली हो तो सर्वप्रथम सरपंच की ओर से एक-दो दिन पहले इसकी मुनादी करा कर इच्छुक अभ्यर्थियों से आवेदन मांगे जाते हैं। सरपंच ही इस तथ्य को अभिप्रमाणित करता है कि अभ्यर्थी उसके गांव की स्थाई निवासी है। आवेदन पत्र के साथ संलग्न दस्तावेजों को वीएलसी के पास भेजा जाता है। इस कमेटी में एएनएम के अलावा ब्लॉक आशा कोऑर्डिनेटर और प्रभारी मेडिकल अफसर (एमओ) शामिल होते हैं। एमओ तीन या चार लोगों की कमेटी गठित करता है जो अभ्यर्थी के दस्तावेजों के आधार पर उनकी अर्हता के अंक निर्धारित करती है।

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कोरोना के खिलाफ़ संग्राम में आशा वर्कर्स की भूमिका अहम

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आशा वर्कर्स की भूमिका पर चर्चा

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ई- सिगरेट और हुक्का सिगरेट जितना ही खतरनाक : डॉ. राजेश

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में तंबाकू के दुष्प्रभावों पर चर्चा

करनाल। तंबाकू सिर्फ कैंसर ही नहीं फैलाता, बल्कि यह उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों का भी एक बड़ा और प्रमुख कारण है। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से अब यह बात साबित हो चुकी है कि तंबाकू में निकोटीन और डोपामिन के अलावा छह – सात हजार अन्य हानिकारक पदार्थ भी मौजूद होते हैं। इनमें 70% तत्व ऐसे हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। दुनिया भर में कैंसर के 25% मामलों के पीछे तंबाकू का ही हाथ है।

यह बात कल्पना चावला राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय के विशेषज्ञों डॉक्टर राजेश गर्ग और डॉक्टर विकास ढिल्लों ने विश्व तंबाकू निषेध दिवस के उपलक्ष्य में रेडियो ग्रामोदय की वेकअप करनाल कार्यक्रम शृंखला में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान से चर्चा के दौरान कही। डॉ. चौहान ने कहा कि देश और दुनिया में तंबाकू उत्पादों का बढ़ता प्रचलन चिंता का विषय है। तंबाकू का सेवन हूँ सदियों से होता रहा है और हरियाणा के ग्रामीण अंचल में एक हुक्का आज भी ख़ासा प्रचलित है। आज हमें ग्रामीण अंचल के लोगों को यह समझाना होगा कि किसी ज़माने में किसी को समाज से बहिष्कृत करने के लिए भी उसका हुक्का-पानी बंद कर न देने की बात कही जाती थी आज वैज्ञानिक शोध के आधार पर ख़ुद हुक्के को अलविदा कहने का समय आ गया है।

कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश गर्ग ने कहा कि तंबाकू को लेकर विश्व में कई युद्ध भी हो चुके हैं। तंबाकू लॉबी विश्व स्तर पर बहुत ताकतवर है। पिछली शताब्दी के दौरान लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि यह मानव शरीर के लिए कितना हानिकारक है। लेकिन आज नए-नए वैज्ञानिक अध्ययनों एवं शोध से यह बात सामने आ चुकी है कि तंबाकू कई प्रकार के कैंसर और सांस की बीमारी का प्रमुख कारण है। फेफड़े, त्वचा और मुंह के कैंसर में अक्सर तंबाकू का योगदान पाया जाता है। अब इसके हानिकारक रासायनिक तत्वों की पहचान कर ली गई है।डॉ. चौहान ने लोगों में फैली उस आम धारणा का जिक्र किया कि हुक्का ज्यादा नुकसानदेह नहीं है क्योंकि इसमें धुआं पानी से होकर गुजरता है। डॉ. राजेश गर्ग ने इस धारणा को पूरी तरह गलत बताते हुए कहा कि हुक्का भी सिगरेट के जितना ही नुकसानदेह है।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. विकास ढिल्लो से पूछा कि तंबाकू या सिगरेट कैंसर के अलावा और क्या-क्या नुकसान पहुंचा सकता है? इस पर डॉ. ढिल्लो ने बताया कि बीड़ी एवं सिगरेट में निकोटीन और टार आदि हानिकारक तत्व पाए जाते हैं जिनमें मुख्य घटक निकोटीन है। यह मस्तिष्क के अंदर डोपामिन को सक्रिय करता है जो हमें फील गुड जैसी अनुभूति कराता है। डोपामिन हमारी रक्त धमनियों को सिकोड़ता है जिससे उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके खतरे का आकलन इस तरह से किया जा सकता है कि हर सिगरेट के साथ व्यक्ति को हृदय रोग होने की संभावना 5% बढ़ जाती है। सिगरेट क्रॉनिक लंग कंडीशन (सीओपीडी) को बढ़ावा देता है जो दुनिया में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। कैंसर में भी यह ओरल कैविटी कैंसर, सांस की नली का कैंसर और फेफड़ों के कैंसर का कारण है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रवीण धनखड़ ने पूछा कि आखिर युवा तंबाकू की ओर इतने ज्यादा आकर्षित क्यों हो रहे हैं? क्या इसका कोई औषधीय या हर्बल इस्तेमाल भी है? इस पर डॉ. गर्ग ने कहा कि तंबाकू का कोई भी औषधीय इस्तेमाल अब तक सामने नहीं आया है।
देसी तंबाकू और फ्लेवर्ड तंबाकू में बुनियादी अंतर संबंधी प्रवीण के सवाल पर डॉ. गर्ग ने कहा कि हुक्का बार और ई-सिगरेट नए तरह का नशा है। इसमें एक द्रव्य पदार्थ होता है जिसे बैटरी के जरिए गर्म किया जाता है। इससे भाप निकलती है जिसे लोग सांस के जरिए अंदर खींचते हैं। इस भाप में भी तंबाकू के लगभग वही सारे कार्सिनोजेनिक तत्व मौजूद होते हैं। इसलिए यह कहना बिल्कुल गलत है कि ई-सिगरेट का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।

चर्चा के दौरान प्रवीण धनखड़ ने डॉ. चौहान से पूछा कि तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थों पर सरकार पूरी तरह प्रतिबंध क्यों नहीं लगा देती और इस दिशा में क्या कर रही है? डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि तंबाकू समेत अन्य मादक पदार्थों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना व्यावहारिक रुप से अत्यंत कठिन है। पूर्व में ऐसे प्रयास सफल नहीं हो पाए। गुजरात और बिहार में शराब एवं अन्य मादक पदार्थों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके बावजूद वहां अवैध शराब एवं नशाखोरी के मामले आते रहते हैं। समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध लगाते ही बीड़ी मजदूरों के रोजगार का मुद्दा उठाने लगता है। इसलिए, यह काम समाज की जागरूकता से ही संभव है। डॉ. राजेश गर्ग ने भी उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि तंबाकू व्यवसाय से लाखों लोगों का व्यवसाय जुड़ा हुआ है और इसकी लॉबी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवसर पर बहुत मजबूत है। तंबाकू पर अचानक पूर्ण प्रतिबंध लगा देना शायद संभव नहीं है। समाज के अंदर ही इसका विकल्प ढूंढना होगा।

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शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा व्यापार नहीं, पेटेंट फ्री हो कोरोना वैक्सीन : सतीश

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में पेटेंट फ्री कोरोना वैक्सीन अभियान पर चर्चा

करनाल। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा व्यापार के विषय नहीं हो सकते। भारतीय जीवन दर्शन यही कहता है। इन दोनों क्षेत्रों से जुड़ी वस्तुओं पर पूरी मानव जाति का अधिकार है। इसलिए इन्हें पेटेंट के दायरे से मुक्त रखना होगा। कोरोना महामारी से विश्व भर में हो रही लाखों लोगों की मौत के बावजूद इसकी रोकथाम के लिए अब तक विकसित दवाओं व वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट की जंजीरों से जकड़ कर रखना और अपने व्यावसायिक फायदे के लिए लोगों की मौत को चुपचाप देखते रहना सर्वथा अनुचित है और निंदनीय भी। यह संपूर्ण मानव जाति के प्रति अपराध है। भारत के स्वदेशी जागरण मंच ने कोरोना वैक्सीन व दवाओं को पेटेंट के नियंत्रण से मुक्त रखने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान छेड़ा है जिससे सभी लोगों को जुड़ना चाहिए।

उपरोक्त विचार रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संगठक सतीश कुमार के साथ हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान की चर्चा के दौरान उभर कर सामने आए। सतीश कुमार गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर भगवती प्रसाद के साथ कोरोना से संग्राम से जुड़े विभिन्न पक्षों पर इस शोध पूर्वक तैयार की गई एक पुस्तक के सह लेखक भी हैं।
इस अवसर पर डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा की कोरोना महामारी के दौरान वैक्सीन व आवश्यक दवाएं न मिलने के कारण विश्व भर में लोग दम तोड़ रहे हैं। इसका समाधान यथाशीघ्र निकलना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संगठक सतीश कुमार ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में सिर्फ अपना व्यवसायिक फायदा देखना विदेशी सोच है। । शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी ये कंपनियां अपनी बौद्धिक संपदा का सर्वाधिकार सुरक्षित रखना चाहती हैं। लेकिन वैश्विक महामारी के दौर में जीवन रक्षक दवाओं और वैक्सीन को पेटेंट से मुक्त रखना ही होगा।

सतीश ने बताया कि विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) का गठन बौद्धिक संपदा को सुरक्षित रखने के लिए ही किया गया था। लेकिन वर्ष 2001 के दोहा में आयोजित ट्रिप्स सम्मेलन में भारत ने यह बात मनवा ली थी कि सामान्य परिस्थितियों में तो पेटेंट कानून लागू होगा, लेकिन वैश्विक महामारी के समय में बौद्धिक संपदा को विश्व के सभी देशों के लिए खुला रखना होगा ताकि वह भी इसका लाभ उठा सकें। पिछले एक वर्ष के भीतर विश्व भर में कोरोना की अब तक मुख्यतः आठ वैक्सीन ही विकसित हो पाई हैं। इस समय विश्व भर में 1200 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है, लेकिन इन कंपनियों की क्षमता 100 करोड़ से ज्यादा उत्पादन करने की नहीं है। पिछले 5 महीने के दौरान सिर्फ 170 करोड़ वैक्सीन का ही उत्पादन हो पाया है। सतीश कुमार ने सवाल उठाया कि यदि उत्पादन की गति यही रही तो दुनिया की 738 करोड़ आबादी को वैक्सीन देने में चार साल लगेंगे। तो क्या तब तक लाखों लोगों को मरने देंगे?

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने विश्व भर में कोरोना वैक्सीनेशन की अद्यतन स्थिति के बारे में पूछा तो सतीश कुमार ने बताया कि वि अमेरिका में 75 फ़ीसदी वयस्क लोगों को वैक्सीन दी गई है तो यूरोपीय देशों में यह आंकड़ा 60% के करीब है। दूसरी तरफ 52 अफ्रीकी देशों में अब तक सिर्फ दो फ़ीसदी वयस्क लोगों को ही वैक्सीन लगाई गई है। भारत ने कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन विकसित की है, इसलिए हम अपेक्षाकृत ज्यादा वैक्सीन लगा पाए।

चर्चा के दौरान डॉ. चौहान ने कहा कि विश्व भर में कोरोना के कारण अपनी जान गवाने वाले लोगों की सूची में भारत 15वें स्थान पर है। वैक्सीनेशन की गति में भी हम विश्व के अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं। इसके बावजूद देश के ही कुछ लोग दुनिया में भारत और भारतीय सरकार की छवि खराब करने के प्रयास में लगे हैं।

डॉ. चौहान की बात का समर्थन करते हुए सतीश कुमार ने कहा कि प्रति दस लाख की आबादी के हिसाब से अमेरिका में 1.2 लाख लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ जबकि इसके मुकाबले भारत में सिर्फ 18000 लोग संक्रमित हुए। इसी प्रकार अमेरिका में प्रति दस लाख की आबादी पर 1870 लोग कोरोना से मरे। भारत में यह आंकड़ा 215 लोगों का रहा जबकि भारत की आबादी 138 करोड़ के करीब मानी जा रही है। सतीश कुमार ने बताया कि संक्रमितों के मामले में भी भारत की स्थिति यूरोपीय देशों से बेहतर रही है। अमेरिका में 600 शव अंत्येष्टि के लिए स्थान के इंतजार में अभी भी रखे हुए हैं। भारत में कोरोना की दूसरी लहर इतनी तेजी से आई जिसका किसी को भी पूर्वानुमान नहीं था। इसीलिए इसे संभालने में हमें 15 दिन लग गए।

पेटेंट फ्री अभियान से जुड़ें

सतीश कुमार ने बताया कि देश और दुनिया के कम से कम 20 लाख लोगों को पेटेंट मुक्त वैक्सीन अभियान से जोड़ने के लिए स्वदेशी जागरण मंच ने एक अभियान छेड़ा है। इसके तहत लोगों से ऑनलाइन जुड़ने और अपना डिजिटल हस्ताक्षर करने की अपील की जा रही है। इसके लिए joinswadeshi.com नाम से एक वेबसाइट लिंक जारी किया गया है। इसके अलावा एक पुस्तक भी लिखी गई है जिसका विमोचन होना बाकी है। पुस्तक में महामारियों का इतिहास, चीन के वुहान शहर से कोरोना विश्व भर में कैसे फैला, भारत ने इसकी रोकथाम के लिए क्या-क्या पूर्व तैयारियां कीं – इन बातों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

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घर का फ्रिज भी हो सकता है ब्लैक फंगस का ठिकाना : डॉ. चौहान

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में ब्लैक फंगस के संभावित ठिकानों पर चर्चा

करनाल। ब्लैक फंगस के जीवाणु नम जगहों पर पनपते हैं। इनमें आपके घर का रेफ्रिजरेटर भी शामिल हो सकता है। बंद फ्रिज के अंदर यदि ब्रेड लंबे समय तक रखा रहे तो उसमें फंगस उत्पन्न होने लगता है। इसके अलावा लकड़ी पत्ते व अन्य जगहों पर भी फंगस पनपता है जो इस बीमारी का कारण बन सकता है। कोरोना के उपचार के दौरान कई बार ऐसा भी देखा गया है कि लोग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में डिस्टिल्ड वाटर के बजाय साधारण पानी डाल देते हैं। इससे भी ब्लैक फंगस पैदा होता है। इसलिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में साधारण पानी का इस्तेमाल कतई न करें।

ब्लैक फंगस पर क्या कहते है PGIMS रोहतक के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र चौहान

उपरोक्त महत्वपूर्ण जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान के बीच चर्चा के दौरान सामने आई। डॉ. चौहान ने बताया कि ब्लैक फंगस सीधा आंख में प्रवेश नहीं करता। इस जीवाणु के मस्तिष्क तक पहुंचने के रास्ते में कई चरण हैं। मसलन यह सांस के साथ नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकता है या ग्रहण किए जाने वाले भोज्य पदार्थों के साथ भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसके अलावा चोट लगने पर यदि त्वचा में छेद हो जाए, तो उस स्थान से भी फंगस शरीर में प्रवेश कर सकता है। ब्लैक फंगस कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को ही आम तौर पर प्रभावित करता है।

ब्लैक फंगस शरीर में प्रवेश करने के बाद किस प्रकार नुकसान पहुंचाता है? ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान के इस सवाल पर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया की ब्लैक फंगस नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करने के बाद पहले साइनस को प्रभावित करता है। उसके बाद यह जबड़ों की मांसपेशियों या चीक बोन में अपना ठिकाना बनाता है जिसके फलस्वरूप गालों में सूजन आ जाती है। इसके बाद यह दांतो को प्रभावित करता है और फिर आंख में प्रवेश करता है।

डॉ चौहान ने बताया कि शरीर में प्रवेश करने के बाद ब्लैक फंगस के जीवाणु धमनियों में रक्त को जमा देते हैं। इस प्रक्रिया में शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं। यह अत्यंत खतरनाक स्थिति होती है। ब्लैक फंगस के रोगियों की मृत्यु दर 50 फ़ीसदी आंकी गई है जो चिंताजनक है।

ब्लैक फंगस से सबसे ज्यादा खतरा किन-किन लोगों को हो सकता है? ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना के उपचार के दौरान स्टेरॉइड का अत्यधिक सेवन करने वाले, अनियंत्रित मधुमेह के रोगियों, एचआईवी से संक्रमित लोगों, किडनी की बीमारी से ग्रस्त और इम्यूनो सप्रेसेंट दवाओं का सेवन करने वाले लोगों को ब्लैक फंगस से संक्रमित होने का खतरा सबसे ज्यादा है। ब्लैक फंगस के रोगियों को उपचार के लिए खून की नस में दवा दी जाती है जो कई दिनों तक चलता है। इसलिए, ब्लैक फंगस के रोगियों का उपचार हर हालत में अस्पताल में ही कराना होगा। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ राजेंद्र सिंह चौहान ने यह भी सलाह दी कि पल्स ऑक्सीमीटर की तरह अब हर घर में ग्लूकोमीटर भी रखना जरूरी हो गया है। ऐसे कई मामले देखे गए हैं कि जो लोग कोरोना संक्रमण से पहले डायबिटीज के रोगी नहीं थे, उनमें भी ठीक होने के बाद मधुमेह के लक्षण पाए जा रहे हैं। ऐसा स्टेरॉयड की दवाएं लेने के कारण हो रहा है।

ब्लैक फंगस हो जाने पर इसके लक्षणों को कैसे पहचाना जाए? डॉ. चौहान के इस सवाल पर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी यदि बुखार आए, छाती में असहजता महसूस हो, आंखों से धुंधला दिखे, मल में खून आए, नाक से काला जैसा तरल पदार्थ निकलने लगे और तालू में भी काले धब्बे नजर आए तो इसे ब्लैक फंगस का लक्षण समझना चाहिए। आंख में प्रवेश कर जाने के बाद ब्लैक फंगस के जीवाणु तेजी से फैलते हैं और 3 से 4 दिनों के भीतर मरीज की मृत्यु की भी नौबत आ सकती है। लेकिन यदि इसका समय पर उपचार शुरू कर दिया जाए तो शत-प्रतिशत इलाज संभव है।

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म्यूकोरमाइकोसिस से निपटने के लिए सरकार ने कसी कमर: डॉ. चौहान

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डॉ. भार्गव के अनुसार मधुमेह से ग्रस्त कोरोना रोगी फंगस के निशाने पर

वेक अप करनाल में वरिष्ठ प्रोफ़ेसर डॉक्टर आदित्य भार्गव के साथ…

करनाल। काले कवक या म्यूकोरमाइकोसिस मधुमेह के मरीज़ों को सर्वाधिक निशाना बना रहा है। पीजीआईएम रोहतक में उपचाराधीन ब्लैक फंगस के अब तक आए कुल संक्रमितों में 95 फ़ीसदी से ज्यादा मरीज़ डायबिटीज ये से ग्रस्त थे। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि जिन लोगों को मधुमेह न हो उनमें यह संक्रमण नहीं हो सकता। यह दुर्लभ बीमारी नहीं है और इसका शत-प्रतिशत उपचार संभव है। यह छुआछूत से फैलने वाली बीमारी भी नहीं है, इसलिए इसके रोगियों को कोरोना मरीजों की तरह आइसोलेट करने की जरूरत नहीं है।

यह जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में पीजीआई रोहतक में ईएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आदित्य भार्गव ने दी। ब्लैक फंगस पर आयोजित चर्चा में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल इस बीमारी को अधिसूचित कर इससे निपटने के प्रति गंभीरता दिखाई है अपितु के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में इसके उपचार के लिए आरक्षित बेड तैयार रखे हैं। डॉ. भार्गव ने बताया कि यह संक्रमण नाइग्रा प्रजाति के फफूंद से फैलता है जो काले रंग का होता है। तेजी से फैलने वाला यह फंगस हवा में हर जगह मौजूद होता है और नाक की चमड़ी को संक्रमित कर उसे काला कर देता है। किसी भी व्यक्ति के नाक और गले में जीवाणुओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है, इसलिए यह अमूमन नाक के रास्ते से ही शरीर में प्रवेश करता है।

डॉ. चौहान ने पूछा कि जब यह फंगस हवा में हर जगह मौजूद होता है तो इसकी चर्चा कोरोना काल में ही क्यों होने लगी है ? डॉ. भार्गव ने बताया कि यह संक्रमण पहले भी होता था लेकिन इसके अत्यंत कम मामले सामने आते थे, जो नगण्य के बराबर थे। यह असामान्य बीमारी है और सिर्फ उन्ही लोगों को होती है जिनकी रोग अवरोधक क्षमता कम हो जाती है। कोरोना से ठीक हुए लोगों और डायबिटीज के मरीजों में संक्रमण अवरोधक क्षमता कम हो जाती है, इसलिए अब इसके ज्यादा मामले सामने आने लगे हैं। स्टेरॉइड का अनियंत्रित प्रयोग भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रवीण धनखड़ ने पूछा कि आम लोग इस संक्रमण के हो जाने पर इसके लक्षणों को कैसे पहचानें? इस पर डॉ. भार्गव ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद मरीज जब घर लौटे और उसे दोबारा बुखार आने लगे, नाक से गाढ़ा तरल पदार्थ बहने लगे, सिर में दर्द हो, दांत में संक्रमण हो जाए, तालू के ऊपर काला-काला सा पदार्थ जमने लगे और चेहरे में भी दर्द हो, तो इसे खतरे की घंटी समझना चाहिए और अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

इस संक्रमण को रोकने के उपायों पर डॉ. भार्गव ने कहा कि ब्लैक फंगस का संक्रमण रोकने के लिए नाक और मुंह की नियमित सफाई बहुत जरूरी है। इसके अलावा रात को सोते समय पानी में बीटाडीन दवा डालकर या गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करना भी फायदेमंद साबित होगा। इसके साथ ही भाप भी लेना जरूरी है। इस संक्रमण से बचने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि डायबिटीज को हमेशा नियंत्रण में रखें और समय-समय पर इसकी जांच करवाते रहें।

ब्लैक फंगस से संक्रमित होने वाले लोगों के बचने की संभावना कितनी होती है और इसका उपचार किस प्रकार किया जाता है? इस सवाल पर डॉ. आदित्य भार्गव ने बताया कि इस बीमारी का शत-प्रतिशत इलाज संभव है, लेकिन नाक से फैल कर यह संक्रमण यदि आंख और मस्तिष्क तक पहुंच गया तो परेशानी बढ़ सकती है। नेजल एंडोस्कोपी के माध्यम से इस बीमारी का पता लगाया जाता है और मास फंगस को हटाने के लिए एंडोस्कोपिक सर्जरी की जाती है।

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टीकाकरण के लिए सिर्फ रजिस्ट्रेशन ही नहीं, बुकिंग भी करवाएं : डॉ. गर्ग

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में वैक्सीनेशन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा

चर्चा के दौरान महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान ने बताया कि हरियाणा सरकार ने कोविड के खिलाफ एक व्यापक अभियान छेड़ने का फैसला किया है। इसके तहत अगले 10 दिनों के भीतर प्रदेश के सभी गांवों के सभी लोगों की कोविड स्क्रीनिंग की जाएगी। इस स्क्रीनिंग के लिए प्रदेश भर में स्वास्थ्य विभाग के करीब आठ हजार कर्मियों की टीमें रवाना होंगी जो गांवों में कोविड संक्रमण की स्थिति का जायजा लेंगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर रोकथाम के लिए कदम उठाए जाएंगे।

असंध। 18 से 44 वर्ष की आयु के लोगों को वैक्सीनेशन के लिए कोविन ऐप पर अपना रजिस्ट्रेशन कराने के साथ-साथ बुकिंग भी करानी होगी। रजिस्ट्रेशन से उल्लिखित साइट पर सिर्फ लोगों का व्यक्तिगत विवरण दर्ज होता है और उन्हें आईडी एवं पासवर्ड जारी किया जाता है, लेकिन बुकिंग कराने से वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध सबसे निकटवर्ती केंद्र और संबंधित व्यक्ति के लिए इस उद्देश्य से निर्धारित की गई अवधि की सटीक जानकारी मिलती है। इसका मकसद एक केंद्र पर भीड़ को इकट्ठा होने से रोकना है।

यह जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश गर्ग ने हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ वैक्सीनेशन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के दौरान दी। उन्होंने कहा कि 45 वर्ष से कम आयु के लोगों को बुकिंग कराने पर ही यह जानकारी मिल सकेगी कि किस केंद्र पर उन्हें कितने बजे वैक्सीनेशन के लिए जाना है। ऐसा न करने पर उन्हें केंद्र से लौटना भी पड़ सकता है।

डॉ. राजेश गर्ग ने बताया कि कोविशिल्ड और कोवैक्सीन दोनों स्वदेशी वैक्सीन हैं जो पूरी तरह सुरक्षित हैं। टीका लगने के बाद आने वाला बुखार या हरारत सामान्य लक्षण हैं जिनसे घबराने की कतई जरूरत नहीं है। टीके के प्रभाव हर व्यक्ति पर अलग-अलग देखने को मिल सकते हैं। कोवीशील्ड की दो खुराकों के बीच अंतर बढ़ाकर अब 12 से 16 हफ्ते इसलिए किया गया है क्योंकि विदेशों में इसके बेहतर परिणाम देखे गए हैं। कोवैक्सीन की दो खुराकों के बीच का अंतर अब भी 4 हफ्ते ही है। 18 से 44 वर्ष के लोगों के लिए एक मोबाइल फोन से एक ही व्यक्ति का रजिस्ट्रेशन होगा। वैक्सीन की दूसरी खुराक के लिए उन्हें उसी मोबाइल से दोबारा रजिस्टर कराना होगा।

डॉ. चौहान ने बताया कि मरीजों को डोर-टू-डोर ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए सरकार संकल्पबद्ध है। मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने ग्लोबल टेंडर आमंत्रित कर वैक्सीन का विदेशों से आयात करने का फैसला किया है। इससे प्रदेश में वैक्सीन का संकट दूर हो जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क से अधिक फीस लेने वाले अस्पतालों के खिलाफ सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी। इसके अलावा गांवों में लोगों की अनियंत्रित आवाजाही को रोकने के लिए मुख्यमंत्री ने फिर से ठीकरी पहरा लगाने के आदेश जारी किए हैं।

टीकाकरण के दूसरे-तीसरे चरण में लोगों की प्रतिक्रिया पहले से बेहतर दिखती है, लेकिन अब भी कुछ लोगों में भ्रम बाकी है। इस संबंध में आम भ्रांतियां क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. राजेश गर्ग ने बताया कि टीकाकरण की शुरुआत में लोगों में काफी उदासीनता का भाव था। लोग टीकों को संदेह की नजरों से देख रहे थे, लेकिन अब इसके प्रति लोगों का नजरिया बदला है। लोग टीकाकरण के प्रति गंभीर हुए हैं और 18 से 44 आयु वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर टीकाकरण में भाग ले रहे हैं। कल्पना चावला अस्पताल में तो टीका लगवाने वालों का एक दिन में 284 का आंकड़ा भी दर्ज किया गया। अस्पताल में आईसीयू बेड की संख्या भी बढ़कर 90 के करीब हो गई है और आइसोलेशन बेड की संख्या अब 190 है।

चर्चा में असंध से सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा, पधाना से लाभ सिंह, चोरकारसा से बलबीर और सिरसा से देवेंद्र टुटेजा ने भी भाग लिया। नरेंद्र शर्मा ने संक्रमण पर चिंता जताते हुए कहा कि असंध में रोज एक-दो मरीजों की मौत हो रही है। उन्होंने ठीकरी पहरा लगाने की जरूरत बताई। देवेंद्र टुटेजा ने जानना चाहा कि वैक्सीन की एफीकेसी रेट बढ़ाना संभव है या नहीं। इस पर डॉक्टर गर्ग ने बताया कि हर वैक्सीन की अलग संरचना होती है और उसके बनाने का तरीका भी अलग होता है। इसलिए किसी भी वैक्सीन की एफीकेसी रेट को नहीं बढ़ाया जा सकता। असंध से लाभ सिंह ने बुकिंग में तकनीकी समस्या पेश आने का जिक्र किया।


सम्बंधित क्षेत्र में वक्सिनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन हेतु स्लॉट उपलब्ध है या नहीं, यह जानना चाहते हैं तो उस क्षेत्र का पिन कोड नंबर 9013151515 नंबर पर व्हाट्सएप करें। स्लॉट की उपलब्धता व्हाट्सएप पर पता चल जाएगी।

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गरीबों को निजी अस्पतालों में इलाज के लिए सरकार देगी आर्थिक सहायता : डॉ. चौहान

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वेकअप करनाल कार्यक्रम में कोरोना के संकट काल में सामाजिक संगठनों की भूमिका पर चर्चा

करनाल। कोरोना महामारी से जूझ रहे प्रदेश के बीपीएल परिवार भी अपना उपचार ठीक से करवा सकें इसके लिए मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार के लोगों को निजी अस्पतालों में भर्ती होने पर इलाज के लिए सात दिनों तक ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से दिए जायेंगे। इसके अलावा सरकार ने निजी अस्पतालों में मरीजों से लूट-खसोट को रोकने के लिए उपचार की दरें या पैकेज तय कर दिए हैं ताकि अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश लग सके। नई व्यवस्था के तहत कोरोना पॉजिटिव मरीजों के आइसोलेशन बेड का शुल्क ₹8000 प्रति दिन होगा। ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों के लिए नॉन आईसीयू ऑक्सीजन बेड का शुल्क ₹13000 प्रति दिन होगा। इसी प्रकार गंभीर मरीजों के लिए ऑक्सीजन सुविधा से युक्त आईसीयू बेड की फीस ₹15000 प्रतिदिन होगी। नकद भुगतान करने वाले मरीजों के लिए इस पैकेज में टेस्ट, दवाएं, बेडसाइड डायलिसिस, डॉक्टर की फीस आदि शामिल हैं। रेम डे सिविर जैसी दवाओं का भुगतान मरीज को इस पैकेज के अतिरिक्त करना होगा। इन दरों को अस्पताल के डिस्चार्ज काउंटरों पर लगाने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।

उपरोक्त जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में कोरोना काल में सामाजिक संगठनों की भूमिका पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला सेवा प्रमुख दिनेश गर्ग तथा विभाग संपर्क प्रमुख कपिल अत्रेजा के बीच चर्चा के दौरान उभरकर सामने आई। डॉ चौहान ने कहा कि समाज का एक-एक जीवन कीमती है। इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि बीमारी से एक भी प्राण न जाए।
इस संकट काल में सामाजिक संगठन किस प्रकार अपनी भूमिका निभा रहे हैं ? डॉ. चौहान के इस सवाल पर संघ के विभाग संपर्क प्रमुख कपिल अत्रेजा ने बताया कि आरएसएस की कोशिश है कि बीमारी से परेशान होकर अस्पताल आने वाला कोई भी मरीज बिना उपचार के वापस ना जाए। यदि संबंधित अस्पताल में बेड उपलब्ध न भी हो तो जब तक अन्य अस्पतालों में उसके लिए बेड का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक उसे इस अस्पताल में प्राथमिक उपचार मिलता रहे। उन्होंने बताया कि कोरोना मरीजों को अस्पतालों में बेड व अन्य आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित कराने के लिए संगठन ने एक टीम बनाकर 18 अस्पतालों को चिन्हित किया है। इनमें सबसे प्रमुख नाम कल्पना चावला अस्पताल का है।

अस्पतालों में रोज-रोज बदलती स्थितियों पर संघ के कार्यकर्ता किस प्रकार निगरानी रखते हैं? डॉ. चौहान के इस सवाल पर कपिल अत्रेजा ने बताया कि प्रत्येक अस्पताल के लिए एक वरिष्ठ कार्यकर्ता तैनात किया गया है जिसके अंतर्गत 3-4 अन्य कार्यकर्ताओं की टीम अस्पताल में बारी-बारी ड्यूटी देती है। पारदर्शिता बरतने के उद्देश्य से अस्पताल प्रबंधन की ओर से सुबह और शाम बिस्तरों की उपलब्धता की अद्यतन सूची जारी की जाती है जिसमें यह भी बताया जाता है कि उपलब्ध बेड किन-किन सुविधाओं से युक्त है। संघ के कार्यकर्ता अस्पताल के उन बिस्तरों का भी पूरा ब्यौरा मांगते हैं जो खाली नहीं हैं।

संघ के जिला सेवा प्रमुख दिनेश गर्ग ने बताया कि कार्यकर्ताओं की टीमों का जिले के सभी अस्पतालों में संपर्क है और किसी न किसी माध्यम से उन्हें यह सूचना मिल जाती है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में बेड के लिए मरीजों के फोन आते ही उन्हें चिकित्सकों की काउंसलिंग टीम के पास भेज दिया जाता है जो उन्हें उचित सलाह देती है। इस टीम में 15 से 20 डॉक्टर शामिल हैं। मरीजों के लिए यह नि:शुल्क परामर्श सेवा संघ की सहयोगी संस्था सेवा भारती के प्रयासों से संभव हो पाया है।

उन्होंने बताया कि सिर्फ ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों के लिए अलग से आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं जिसका मुख्यमंत्री के हाथों लोकार्पण किया गया है। दिनेश गर्ग ने बताया कि कंसल्टेंसी टीम का यह प्रयास है कि यदि बहुत आवश्यक न हो तो मरीजों का घर पर ही उपचार सुनिश्चित किया जा सके। चर्चा के दौरान डॉ. चौहान ने वैक्सीनेशन पर जोर देते हुए कहा कि वैक्सीन लगवाना सबके लिए अत्यंत आवश्यक है। टीका लगने के बाद भी कोरोना हो सकता है, लेकिन तब यह संक्रमण जानलेवा नहीं रहता।

करनाल को मिल रहा 15 टन ऑक्सीजन

कपिल अत्रेजा ने बताया कि ऑक्सीजन सप्लाई की स्थिति में अब सुधार आया है। करनाल जिले को 15 टन ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है, जिसमें कल्पना चावला अस्पताल को 8 टन और बाकी के 17 अस्पतालों को 7 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने इसे करनाल जिले के लिए पर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि अब ज़िले में ज़रूरतमंद मरीज़ों को उनके घर पर ही ऑक्सीजन की आपूर्ति का सिलसिला भी शुरू हो चुका है।

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कोरोना ने आयुर्वेद और योग की महत्ता को पुनर्स्थापित किया : डॉ. चौहान

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में कोरोना के उपचार में आयुर्वेद की भूमिका पर चर्चा

करनाल। कोरोना महामारी से उत्पन्न विश्वव्यापी संकट ने दुनिया में आयुर्वेद और योग की महत्ता को पुनर्स्थापित किया है। कोरोना हमारी श्वसन प्रक्रिया को छिन्न-भिन्न करने वाला एक ऐसा खतरनाक वायरस है जो सीधा हमारे फेफड़ों पर असर करता है और हमारी समस्त प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है। योग शरीर के सभी अंगों को सक्रिय करने वाला एक ऐसा व्यायाम है जो न सिर्फ फेफड़ों को मजबूत करता है, बल्कि हमारी प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। कोरोना से लड़ने में योग से बेहतर कोई विकल्प नहीं जो आयुर्वेद की ही देन है।

उपरोक्त विचार रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉ. संदीप सिंधड के बीच कोरोना के उपचार में आयुर्वेद की भूमिका पर चर्चा के दौरान उभरकर सामने आए। डॉ. चौहान ने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं योगासन कोरोना के प्राणघातक प्रभावों को काफी हद तक कम करने में सक्षम है। संक्रमण के प्रारंभिक चरण में तो अधिकतर मरीज घरेलू उपचार से ही ठीक हो जाते हैं जो वास्तव में आयुर्वेदिक चिकित्सा होती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा के तहत किए जाने वाले विभिन्न उपायों पर प्रकाश डालते हुए असंध निवासी डॉ. संदीप ने कहा कि संक्रमण हो जाने पर मरीज को सर्वप्रथम खुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए और हमेशा मास्क का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा हर दिन सुबह कम से कम एक घंटा सूक्ष्म प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम आदि ऐसे योगासन हैं जिनका शत-प्रतिशत असर प्रमाणित है।

जब कोरोना फेफड़ों को जकड़ ले तो क्या करना चाहिए? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. संदीप ने बताया कि नियमित व्यायाम के अलावा मरीजों को रोजमर्रा के खानपान में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले आहार को शामिल करना चाहिए। सरकारी अस्पतालों में मिलने वाला आयुष काढ़ा यदि उपलब्ध ना हो तो घर पर ही सोंठ, हल्दी, अदरक, तुलसी व काली मिर्च आदि का काढ़ा तैयार कर दिन में दो-तीन बार इसका सेवन करना चाहिए और पांच छह बार गर्म पानी पीना चाहिए। नियमित रूप से भाप लेना भी फायदेमंद है। डॉ. संदीप ने हर मौसम में चवनप्राश का गर्म पानी के साथ सेवन करने की सलाह देते हुए कहा कि इससे इम्युनिटी बढ़ती है। उन्होंने चवनप्राश को दूध के साथ लेने से मना किया और इसे नुकसानदेह बताया।

डॉ. संदीप ने फ्रिज में रखे भोज्य पदार्थ और न्यूडल, पिज़्ज़ा, बर्गर आदि से बचने की सलाह दी। इस पर सहमति जताते हुए डॉ. चौहान ने कहा कि फ्रिज से रिश्ते को पुन: परिभाषित करने की जरूरत है। फ्रिज का ठंडा खाना कई बीमारियों का कारण बन रहा है। दोनों ने कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि वैक्सीनेशन के बाद जान जाने का खतरा 90 फ़ीसदी तक कम हो जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक ने प्राणायाम के तहत एक दिन पेट और दूसरे दिन कमर के बल लेटकर योगासन करने की सलाह दी।

पौधारोपण का लें संकल्प

चर्चा के दौरान डॉ. चौहान ने कहा कि कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीज ऑक्सीजन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और इसके न मिलने पर दम तोड़ देते हैं। इसलिए, प्रकृति प्रदत्त इस अनमोल उपहार को संरक्षित करना हम सबका कर्तव्य है। यह पृथ्वी पर मौजूद जीवन को बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसलिए हम सभी को पौधरोपण पर अधिक ध्यान देना चाहिए। डॉ. चौहान ने आह्वान किया कि हर व्यक्ति कम से कम दो पौधे लगाने का संकल्प अवश्य ले ताकि हमारी भावी पीढ़ी सुरक्षित रह सके और भविष्य में ऑक्सीजन का संकट ना हो।

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