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पानी, जमीन की सेहत और किसान की जेब सबका ध्यान रखती है बागवानी : डॉ चौहान

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रेडियो ग्रामोदय के जय हो कार्यक्रम में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. समर सिंह से विशेष बातचीत

करनाल । किसान की आय का निरंतर बढ़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है । किसानी की लागत निरंतर बढ़ रही है, जिससे जोत का लाभ या प्रति एकड़ लाभ अपेक्षाकृत घट रहा है। यह चिंता का विषय है । बागवानी खेती से जुड़ा वह क्षेत्र है जिसमें अपार संभावनाएं मौजूद हैं। बागवानी न केवल भूमि की सेहत , पानी के स्तर आदि का ध्यान रखती है बल्कि किसान की जेब का भी पूरा पूरा ध्यान रखती है। यह तथ्य हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष और प्रदेश भाजपा प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान की रेडियो ग्रामोदय के जय हो कार्यक्रम में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. समर सिंह से हुई वार्ता में सामने आए।

विश्वविद्यालय और बागवानी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर आधारित इस चर्चा में कुलपति डॉ. समर सिंह ने कहा कि हरियाणा में बागवानी विश्वविद्यालय की स्थापना मुख्यमंत्री मनोहर लाल व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच का परिणाम है। चार क्षेत्रीय केंद्रों के माध्यम से महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय प्रदेश के सभी किसानों तक बागवानी के लाभ व शिक्षा को पहुंचाने के लिए तत्पर है। पाठ्यक्रम कक्षाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में डॉ. समर ने बताया कि विश्वविद्यालय कैंपस और विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों के कैंपस की बाउंड्री और पोली हाउस का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। एमएससी हॉर्टिकल्चर और पीएचडी की कक्षाएं हिसार कृषि विश्वविद्यालय में चल रही हैं तथा पिछले सत्र से 4 वर्ष का बीएससी हॉर्टिकल्चर कार्यक्रम नीलोखेड़ी में प्रारंभ हो चुका है। जैसे ही विश्वविद्यालय कैंपस में चल रहे निर्माण कार्य पूरे होते जाएंगे यहां पर भी सभी चीजें प्रारंभ हो जाएंगी।

ड्रिप सिंचाई से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर ने कहा की ड्रिप सिंचाई से ना केवल पानी का बचाव होता है बल्कि फसल की पैदावार और गुणवत्ता में भी 10 से 15% की वृद्धि होती है। किसानों को हर संभव प्रयास कर ड्रिप सिंचाई का लाभ उठाना चाहिए । ड्रिप सिंचाई पर हरियाणा सरकार द्वारा 80% सब्सिडी भी प्रदान की जाती है।

अकादमी उपाध्यक्ष डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान द्वारा पानी के गिरते स्तर से जुड़े एक सवाल के उत्तर में डॉक्टर ने कहा की है अत्यंत चिंता का विषय है हमें ध्यान रखना होगा कि हर साल पानी का स्तर 1 लीटर नीचे जा रहा है। ऐसा ही जारी रहा तो सोचिए कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे? जैसा बढ़िया पानी बहुतायत में हमने अपने बाप दादों से लिया था उसको बर्बाद कर हम आने वाली पीढ़ी के लिए पता नहीं कितनी विषम परिस्थितियों का निर्माण करेंगे? उन्होंने जल गिरते जल स्तर के साथ-साथ जमीन की बिगड़ती सेहत पर भी चिंता व्यक्त की ।

जैविक पदार्थ स्तर या ऑर्गेनिक मैटर या आम भाषा में जमीन का स्वास्थ्य फसल के अवशेष जलाने , यूरिया का बहुत जादा उपयोग करने और लगातार अनेकों वर्षों तक एक ही फसल को उगाते रहने से लगभग 4 गुणा कम हो गया है। इस संबंध में प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों की बहुत तेजी से आवश्यकता है। किसान को पानी की कमी और ऑर्गेनिक मैटर की बिगड़ती स्थिति को समझना होगा और इसके अनुसार ही फसल चक्र को अपनाना होगा। बागवानी को अपनाना इन समस्याओं के समाधान का एक बेहतरीन विकल्प है।

रोहतक निवासी प्रवीण धनखड़ की बागवानी संबंधी एक समस्या के उत्तर में डॉ. समर ने कहां की बागवानी के संबंध में सही निर्णय लेने के लिए सबसे ज्यादा मिट्टी की जांचआवश्यक है। बाग के लिए 2 या 3 मीटर तक की मिट्टी की जांच करानी आवश्यक है जबकि अन्य फसलों के लिए 15 सेंटीमीटर तक की मिट्टी की जांच कराई जानी चाहिए। मिट्टी की जांच के लिए किसान रोहतक , हिसार या करनाल में स्थित लैबोरेट्रीज जा सकता है और अब तो किसान के पास मोबाइल वैन का विकल्प भी मौजूद है।

पाठ्यक्रम से जुड़े पिंजौर के आशुतोष के प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर समर ने बताया अति शीघ्र ही गैर साइंस विद्यार्थी अर्थात आर्ट्स और कॉमर्स के विद्यार्थियों के लिए भी डिप्लोमा कोर्स प्रारंभ किए जाएंगे। हरियाणा से बाहर के विद्यार्थियों के लिए भी कुछ सीटों की व्यवस्था है जिन पर टेस्ट के माध्यम से विद्यार्थी प्रवेश पा सकते हैं।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान के बागवानी में लोगों के रुझान और सफलता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में डॉ. समर ने कहा कि करनाल और अंबाला से जुड़े क्षेत्र बागवानी के लिए अत्यंत उत्तम हैं । करनाल की जमीन अमरूद, आम , लीची और रसीले फलों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। किसान बागवानी में आ रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं । इस क्रम में उन्होंने जैनपुरा गांव के किसान साहिब सिंह और गोंदर के किसान केहर सिंह के एप्पल बेर के बाग का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बागवानी का मन बनाने वाले किसान इन किसानों से मिल सकते हैं और घरौंडा व श्यामगढ़ में हरियाणा सरकार के बागवानी सेंटर में भी जा कर बागवानी तकनीकों को देख सकते हैं।

बागवानी के क्षेत्र के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. समर ने कहा कि सभी फलदार पौधे , सभी सब्जियां, सभी चिकित्सीय पौधे, सभी प्रकार के फूलों की खेती, सजावट के पौधों की खेती, मशरूम तथा शहद की खेती भी बागवानी में शामिल है। उचित प्रशिक्षण प्राप्त कर बागवानी करने वाले एक किसान कि आय परंपरागत रूप से खाद्यान्नों की खेती करने वाले किसान की तुलना में अधिक होती है। इससे भी आगे अगर कोई किसान पढ़ा लिखा है तो अत्यंत आधुनिक तकनीक हाइड्रोगेमी और एरोगेमी का प्रशिक्षण ले सकता है। इसमें सीधे पानी और हवा के माध्यम से ही पौधे को पोषक तत्व दिए जाते हैं। खेती की इन नवीनतम तकनीकों का प्रयोग कर वह 10 गुना ज्यादा तक प्रोडक्शन प्राप्त कर सकता है । दोनों तकनीकों में पौधों में बीमारी बहुत कम होती है। प्रारंभिक स्तर पर तो ऐसा लगता है कि बहुत अधिक लागत लग रही है किंतु उत्पादन को देखते हुए निवेश तुलनात्मक रूप से ज्यादा नहीं होता। डॉ. समर ने कहा कि महाराणा प्रताप बगवानी विश्वविद्यालय इन अत्यंत आधुनिकतम तकनीकों से जुड़े शोध में विशेष ध्यान दे रहा है।

डॉ. चौहान द्वारा प्रोट्रैक्टेड फार्मिंग से जुड़े किसानों के बुरे अनुभव के बारे में पूछने पर डॉक्टर समर ने कहा की प्रोटेक्टिड फार्मिंग में वैज्ञानिक तकनीकों व उपकरणों के माध्यम से वातावरण के तापमान, नमी और अन्य कारकों को नियंत्रित कर खेती की जाती है। यह खेती सब्जियों और छोटे पौधों के लिए सर्वोत्तम है। इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और जानकारी की आवश्यकता है। पूरी जानकारी के बिना मात्र सब्सिडी का लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक किसानों ने बिना मिट्टी की जांच किए ढांचे खड़े किए और बाद में पता चला कि जमीन में सूत्र कृमि की समस्या है जिससे वह प्रोटेक्टेड फॉर्मिंग का लाभ पूरी तरीके से नहीं उठा पाए। वर्तमान में कांच का हाउस तैयार करने की बजाए सस्ते नेट हाउस का विकल्प भी मौजूद है।

आंगन में बगिया बनाने वाले पनोधी, घरौंडा के किसान ओमपाल के कलम से फल के पौधे बनाने की तकनीक से जुड़े प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर समर ने कहा की महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय में ही शीघ्र ही एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

आगामी 5 वर्षों में बागवानी विश्वविद्यालय के माध्यम से किस प्रकार का परिवर्तन होगा इस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर समर ने कहा फिर निश्चित रूप से बागवानी का एरिया जो अभी सवा 500000 एकड़ है वह 900000 एकड़ हो जाएगा इसके साथ साथ विश्वविद्यालय उच्च क्वालिटी की नर्सरी बीज और हाइब्रिड पौधों आधी आधी की व्यवस्था भी करेगी तथा बागवानी से संबंधित विभिन्न तकनीकों को लेकर युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने पर विशेष जोर रहेगा। विश्वविद्यालय विशेष रूप से साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर फोकस करेगा जिससे रिसर्च किसानों तक पहुंच सके और किसान ज्यादा जागरूक और प्रशिक्षित होकर पानी और जमीन की सेहत बिगाड़े बिना अधिक से अधिक लाभ कमाए।

वार्ता में ऑनलाइन माध्यम से मुकेश अग्रवाल, नरेंद्र गोंदर, अंकुश और तरसेम राणा ने भी वृक्षारोपण को ले अपने विचार व्यक्त किए।

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वैकल्पिक फसलों की हो खेती : डॉ. चौहान

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वेक अप करनाल में ग्राउंड वाटर संरक्षण पर चर्चा

करनाल। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिए भू-जल का संरक्षण बहुत जरूरी है। जमीन के नीचे स्थित इस जलसंपदा को बचाने के लिए हमें इसका दोहन सीमित करना होगा। भूजल का दोहन कम करने के अनेक उपायों में कृषि और बागवानी भी एक है। हमें अपनी खेती करने के अंदाज को बदलना होगा। धान की फसल उपजाने में ग्राउंड वाटर की बड़ी मात्रा का दोहन होता है। एक अनुमान के अनुसार 1 किलो धान के उत्पादन में 4000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके कारण करनाल जिले के गांवों में भूजल का स्तर घटकर अब 100 से 120 फीट नीचे चला गया है। पहले या स्तर जमीन से सिर्फ 30 फीट नीचे हुआ करता था। यह घटता भूजल स्तर चिंता का विषय है। इसलिए किसानों को अब ध्यान से अन्य फसलों की ओर जाना होगा। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हरियाणा सरकार ने 3 साल पहले मेरा पानी मेरी विरासत योजना शुरू की थी जिसके तहत कई प्रावधान किए गए हैं।

उपरोक्त टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम वेकअप करनाल में असंध के कृषि विकास अधिकारी डॉ. राधेश्याम से चर्चा के दौरान की। मेरा पानी मेरी विरासत योजना को धरातल पर उतारने में पेश आ रही समस्याओं पर चर्चा करते हुए डॉ. राधेश्याम ने बताया कि पहले इस योजना को जलशक्ति अभियान के नाम से किसानों के बीच प्रचारित किया गया था। ब्लॉक एवं जिला स्तर पर किसान कैंप लगाकर किसानों को जागरूक किया गया कि एक किलो धान का उत्पादन करने में औसतन 4000 लीटर पानी खर्च होता है जबकि इसकी वैकल्पिक फसल मक्की के उत्पादन में मात्र 800 लीटर पानी की खपत होती है। इसलिए किसानों को वैकल्पिक फसलों की बिजाई पर ध्यान देना चाहिए। डॉ राधेश्याम ने बताया की वैकल्पिक फसलों में मक्की, बाजरा, कपास, मूंग, उड़द, तिल आदि शामिल हैं।

वेक अप करनाल

डॉ. चौहान ने बताया कि किसानों को जागरूक करने के सुपरिणाम सामने आए। इस योजना के तहत हरियाणा में करीब एक लाख एकड़ भूमि धान मुक्त हो गई। धान न बोने वाले किसानों के खाते में प्रदेश सरकार ने 52 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि डाली। अब सरकार का लक्ष्य दो लाख एकड़ भूमि को धान उत्पादन से मुक्त करने का है। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ राधेश्याम ने बताया कि पहले मक्की के खरीदारों का अभाव था। इसे दूर करने के लिए सरकार ने वैकल्पिक फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया और फसलों के खरीदार भी तैयार किए। इसका नतीजा यह हुआ कि हरियाणा के 15 जिलों में करीब 15 सौ एकड़ भूमि में किसानों ने मक्की की फसल उपजाई। उन्होंने स्पष्ट किया कि मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत सरकारी पोर्टल पर अपनी फसलों का पंजीकरण कराने वाले किसानों की ही फसल सरकार द्वारा खरीदी गई।

डॉ. राधेश्याम ने बताया कि धान के वैकल्पिक फसलों के उत्पादन के लिए विभाग को पूरे करनाल जिले के लिए 8700 एकड़ भूमि का लक्ष्य दिया गया है। फसलों का पंजीकरण कराने में उपलाना का स्थान सबसे ऊपर है। पंजीकरण की अंतिम तिथि 25 जून है। उन्होंने बताया की सरकार ने वैकल्पिक फसलों में चारे के उत्पादन को भी शामिल किया है। चारा उपजाने वाले किसानों को सरकार ₹7000 के हिसाब से पैसे देगी। इसके अलावा वैकल्पिक फसलों का बीमा कराने के लिए प्रीमियम का खर्चा भी सरकार की ओर से वहन किया जाएगा।

इस अवसर पर डॉ चौहान ने बताया की फसलों की चॉइस को बदलने के लिए हरियाणा सरकार ने वर्ष 2030 तक के लिए एक बागवानी विजन तैयार किया है। बागवानी विजन में भावांतर भरपाई योजना के तहत इस बार 23 फसलों को शामिल किया गया है जिनमें 14 सब्जियां भी शामिल हैं। इस योजना के तहत 21 फसलों के संरक्षित मूल्य निर्धारित किए गए हैं। साथ ही यह प्रावधान भी किया गया है कि यदि भावांतर भरपाई योजना में शामिल फल व सब्जियों की पूरी फसल प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हो जाती है तो उसके पूरे खर्च की भरपाई मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना के अंतर्गत की जाएगी। इसके तहत किसानों को ₹30000 प्रति एकड़ के हिसाब से क्लेम मिलेगा। फलों के मामले में भरपाई की यह दर ₹40000 प्रति एकड़ होगी। इस बीमा योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को 2.5% राशि का भुगतान करना होगा।

डॉ चौहान ने बताया कि मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने किसानों के लिए एक और योजना शुरू की है। इसके तहत यदि कोई किसान 1 एकड़ क्षेत्र में 400 पौधे लगाता है तो उसे अगले 3 साल तक प्रदेश सरकार प्रति एकड़ ₹10000 देगी। यह भी जल संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है। उन्होंने बताया कि इस बार वैकल्पिक फसलों की सूची से बाजरा को हटा लिया गया है।

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ऑक्सीवनों की स्थापना व पुराने पेड़ों के लिए ‘पेंशन’ अनूठी योजनाएं : चौहान

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में पर्यावरण प्रदूषण पर चर्चा

करनाल। हरियाणा सरकार ने राज्य भर में ऑक्सीवनों की स्थापना व विकास के लिए का फैसला किया है। इस दिशा में पहल करते हुए करनाल में ऑक्सीवन शुरू भी हो चुका है और पंचकूला में भी ऑक्सीवन प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। ऐसा पर्यावरण को स्वच्छ और सांस लेने लायक बनाए रखने के उद्देश्य से किया जा रहा है। एक पेड़ जीवन भर के दौरान करीब 70 लाख का ऑक्सीजन देता है। इसलिए, पौधे जरूर लगाएं और उनका संरक्षण भी करें। जितना पेड़ लगाएंगे, उतना ही पर्यावरण को बचाएंगे। बड़े वृक्षों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अनूठी पेंशन योजना भी शुरू करने का ऐलान किया है जिसके अंतर्गत वयोवृद्ध वृक्षों की संभाल करने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं को राज्य सरकार उनकी इस सेवा के एवज़ में पेंशन देगी। रेडियो ग्रामोदय के ‘वेकअप करनाल’ कार्यक्रम में हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के करनाल स्थित क्षेत्रीय अधिकारी शैलेंद्र अरोड़ा से पर्यावरण प्रदूषण पर चर्चा के दौरान हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने की। उन्होंने कहा कि जीव-जंतु, पृथ्वी, जल वायु और मिट्टी आदि मिलकर हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों के आपसी असंतुलन को ही पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। पर्यावरण प्रदूषण से सबका जीवन खतरे में पड़ सकता है। एक पेड़ एक बच्चे के बराबर होता है। इसलिए उनका भी संरक्षण जरूरी है।

Wake Up Karnal : Environment Day

पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों की पहचान करते हुए शैलेंद्र अरोड़ा ने कहा कि जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, बायो मेडिकल वेस्ट, म्युनिसिपल सॉलि़ड वेस्ट, ई-कचरा, बैटरी का कचरा आदि मिलकर पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 6 महीने के दौरान प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने करनाल में कई कदम उठाए हैं। प्रदूषित जल के शोधन के लिए मल संयंत्रों में ऑनलाइन सिस्टम और नई एसपीआर टेक्नोलॉजी लगाई गई है। उनके पैरामीटर सख्त कर दिए गए हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। इनका पालन न करने वालों पर जुर्माने की राशि का प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा वाटर एक्ट जिसे जल प्रदूषण नियंत्रण एक्ट 1974 भी कहा जाता है के तहत अवैध रूप से स्थापित उद्योगों के खिलाफ भी विभाग ने कड़ी कार्रवाई की है। ऐसे सात – आठ उद्योगों को बंद भी किया गया है। 1 साल के भीतर वॉटर एक्ट के तहत 9 मामले दर्ज किए गए हैं। स्पेशल एनवायरनमेंट एक्ट के तहत उद्योगों एवं बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई रूटीन की प्रक्रिया है। उन्होंने स्पष्ट किया की गंदा पानी छोड़ने वाले उद्योगों के खिलाफ वाटर एक्ट के तहत करवाई होती है। इसके अलावा बिना अनुमति के स्थापित होने वाले उद्योगों के खिलाफ भी कार्यवाही की जाती है।

डॉ. बीरेन्द्र सिंह चौहान ने पूछा कि उद्योग आम तौर पर किस-किस तरह से पर्यावरण संरक्षण के नियमों को तोड़ते हैं? उनके खिलाफ किस तरह की शिकायतें आती हैं? इस पर शैलेंद्र अरोड़ा ने बताया कि जल शोधन संयंत्रों की नियमित चेकिंग की जाती है। इस दौरान जहां भी छेड़छाड़ पाई जाती है वहां उन्हें नोटिस देकर कार्रवाई की जाती है। इतने पर भी ना मानने पर उन उद्योगों को बंद कराने की प्रक्रिया शुरू होती है और उन पर पर्यावरण कंपनसेशन भी लगाया जाता है।

एडवोकेट राजेश शर्मा ने शिकायत की कि करनाल क्षेत्र में कई उद्योगों ने बिना अनुमति के सबमर्सिबल पंप लगा रखे हैं। इस पर शैलेंद्र अरोड़ा ने बताया कि कुछ उद्योग प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और कुछ उद्योग नगर निगम के दायरे में। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दायरे में आने वाले उद्योगों से ऑनलाइन आवेदन मांगे जाते हैं। उनकी निगरानी के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी होती है। जो उद्योग नियमों का पालन नहीं करते, उन पर कार्रवाई होती है।

इस अवसर पर डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने केंद्र सरकार की नई पहल के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर घोषणा की है की वर्ष 2025 तक देश की हर स्थान पर पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने की व्यवस्था की जाएगी। केंद्र सरकार का ग्रीन एनर्जी पर जोर है। सौर ऊर्जा के मामले में भारत विश्व नेता बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने पूछा कि करनाल शहर की हवा राज्य के अन्य शहरों के मुकाबले पर्यावरण की दृष्टि से कितनी प्रदूषित है? इस पर शैलेंद्र अरोड़ा ने बताया कि 2 दिन का डाटा एयर क्वालिटी इंडेक्स (ए क्यू आई) के मानकों के अनुसार 54 और 73 के आसपास था। उन्होंने बताया कि करनाल का ए क्यू आई कुरुक्षेत्र के मुकाबले बेहतर है।

हरियाणा के ग्रामीण अंचल में पर्यावरण से जुड़े मसले और बड़ी चुनौतियां क्या हैं? डॉ चौहान के इस सवाल पर अरोड़ा ने कहा कि गांव में सीवरेज सिस्टम का ना होना एक बड़ी चुनौती है। स्मार्ट सिटी के लिहाज से पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए शहर में काम शुरू हुआ है। इसके तहत ट्री-प्लांटेशन और रोड क्लीनिंग की जा रही है।

कई जगह लग रहे सॉलिड वेस्ट प्लांट

शैलेंद्र अरोड़ा ने बताया की कचरा निस्तारण के लिए करनाल में एक सॉलिड वेस्ट प्लांट पहले से कार्यरत है। इसके अलावा सोनीपत में भी एक प्लांट का निर्माण हो रहा है। असंध क्षेत्र में भी एक बहुत बड़ा प्लांट लगने वाला है। पंचायती राज विभाग ने 35 छोटे-छोटे प्रोजेक्ट का प्रस्ताव सरकार को भेज रखा है। अन्य जगहों पर डंपिंग ग्राउंड मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि करनाल जिले के जल स्रोतों में यमुनानगर का औद्योगिक कचरा मिलने के संबंध में यमुनानगर के संबंधित अधिकारियों से औपचारिक शिकायत कर इसे रोकने के लिए कदम उठाने के लिए कहा गया है। इस सिलसिले में 6 महीने पहले भी दोनों जिलों के अधिकारियों के बीच पत्राचार हुआ था। शैलेंद्र अरोड़ा ने गीले और सूखे कचरे को घर में ही अलग-अलग करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इससे कूड़ा निस्तारण की प्रक्रिया आसान हो जाती है।

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बदलते मौसम के अनुसार पशुधन का ध्यान रखना ज़रूरी: डॉ. तरसेम

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल में कोरोना से बचाव और पशुओं की देखभाल पर चर्चा

करनाल। कोरोना संकट के इस काल में पशु पालक अपने पशुधन का भी चौकसी के साथ ख़याल रखें। उन्हें घर में ही मौजूद पोषक आहार दें और वर्तमान मौसम को ध्यान में रखते हुए ख़ूब पानी पिलाते रहें। वरिष्ठ पशु चिकित्सक और निसिंग पशु चिकित्सालय के प्रभारी डॉक्टर तरसेम राणा ने यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल में चर्चा के दौरान की। महामारी के दौर में कोरोना से खुद को बचाने और पशुओं की भी उचित देखभाल के उपायों पर चर्चा करते हुए डॉ. चौहान ने कहा कि कोरोना गांवों में भी कहर ढा रहा है।

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पशु चिकित्सक डॉ. तरसेम राणा ने कहा कि ऐसे मौसम में अपनी देखभाल करने के साथ-साथ मवेशियों का भी ध्यान रखना जरूरी है। इस मौसम में हरे चारे का अभाव हो जाने से पशुओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
हरा चारा उपलब्ध न हो तो पशुओं को क्या खिलाना चाहिए? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. तरसेम राणा ने कहा कि घर और खेत में जो उपलब्ध हो उसी से काम चलाया जाए। पशुओं को खूब पानी पिलाएं और सूखे चारे के साथ तेल या घी के साथ आटे का पेड़ा बनाकर दो-तीन दिन के अंतराल पर दिया जाए। यह पशुओं का पेट ठीक रखने में मदद करेगा। डॉक्टर तरसेम ने कहा कि जिस मौसम में हरा चारा अधिक होता है उस समय किसानों को उसे कम चारे वाले दिनों के लिए अचार बनाकर रख लेना चाहिए। क्षेत्र में अनेक प्रोग्रेसिव किसान अब अपने स्तर पर आचार तैयार करने लगे हैं और यह अचार बाज़ार में भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि इसे बनाने की विधि बहुत जटिल नहीं है और अधिक से अधिक किसानों को इसे सीखना चाहिए।
डॉ. तरसेम ने मवेशियों का बीमा कराने पर जोर देते हुए कहा कि सभी किसानों को अपने पशुधन का बीमा अवश्य करवाना चाहिए।

पशु बीमा का प्रीमियम कितना होता है और इसमें कितने तक का बीमा होता है? इस सवाल पर डॉ. राणा ने कहा कि पशु बीमा का प्रीमियम मात्र ₹100 होता है। दूध की उपलब्धता के अनुसार पशुओं के बीमे की राशि तय होती है। उदाहरण के तौर पर यदि 20 लीटर तक दूध देने वाला पशु हो तो ₹80000 तक का बीमा हो सकता है। बीमा हो जाने पर इसकी एक प्रति किसानों को भी दे दी जाती है। उन्होंने पशुओं का पेट ठीक रखने के लिए ज्वार का अचार बनाने की सलाह दी।

कार्यक्रम में कोरोना से जंग जीतकर सकुशल घर लौटे कुरुक्षेत्र निवासी बोधेश्वर दयाल सिंह कौशल ने कोरोना को कतई हल्के में ना लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सर्दी-खांसी और जुकाम होने पर इसे सामान्य फ्लू समझने की भूल ना करें और तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। उन्होंने डॉक्टरी उपचार के साथ-साथ घरेलू उपचार भी जारी रखने की सलाह दी। बोधेश्वर ने बताया कि हल्दी वाला दूध, लॉन्ग और इलायची इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। इसके साथ ही बड़े पीपल का चूर्ण भी शहद के साथ लेना स्वास प्रक्रिया के लिए अच्छा है। उन्होंने कहा कि कोरोना से लड़ने के लिए दवाओं के साथ-साथ मजबूत इच्छाशक्ति और अपनों का भावनात्मक समर्थन भी बहुत जरूरी है।

ग्रामीण आइसोलेशन केंद्र चालू

कोरोना का वायरस निरंतर अपना रूप बदल रहा है। बड़े से बड़ा विशेषज्ञ भी आज कोरोना के स्वभाव के बारे में दावे के साथ कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। इतना तो तय है कि कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वालों को यह वायरस सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। इसलिए कोरोना से बचाव के लिए अपनी इम्यूनिटी को मजबूत करना बहुत जरूरी है। डबल मास्क लगाएं और पूरी सावधानी बरतें। डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि ग्रामीण अंचल में मरीज़ों की सुविधा के लिए आइसोलेशन केंद्र बनाए जा रहे हैं। निसिंग, गोंदर, मजूरा, राहड़ा सहित विभिन्न स्थानों पर ऐसे केंद्रों का लोकार्पण हो चुका है।

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पर्यावरण के महत्व को समझें, गांवों में चले जागरूकता अभियान : डॉ. चौहान

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रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल में धरती को हरा-भरा बनाने के उपायों पर चर्चा

करनाल। धरती से मनुष्य का संबंध माता और पुत्र जैसा है। धरती बचेगी, तभी इस पर मौजूद जीवन बचेगा। पर्यावरण को बचाए बिना पृथ्वी को बचाना संभव नहीं है। आज धरती संकट में है, इसीलिए मानव जीवन पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है। कोरोना समेत विभिन्न कालखंड में उत्पन्न होने वाली महामारी संभवत: पर्यावरण प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। अपनी धरती को हरा-भरा और खुशहाल रखने के लिए हमें हरसंभव प्रयास करने होंगे। पौधरोपण उनमें से एक है।

यह विचार रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के विषय पर करनाल के मंडलीय वन अधिकारी (डीएफओ) नरेश रंगा से चर्चा के दौरान हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज पर्यावरण के प्रति अत्यंत सजग एवं दूरदर्शी थे जबकि उस वक्त पृथ्वी पर पर्यावरण का कोई संकट नहीं था। हमारी संपूर्ण जीवन शैली और परंपराएं इस प्रकार निर्धारित की गई कि पृथ्वी और पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे और इस पर मौजूद संपूर्ण जीवन सुरक्षित रहे।

डीएफओ नरेश रंगा ने इस अवसर पर कहा कि शुद्ध जल और शुद्ध वायु जीवन का आधार हैं और हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार भी। भावी पीढ़ी को शुद्ध जल और शुद्ध वायु देना हम सबका दायित्व है। इसलिए आने वाले कल के लिए हमें अपने वर्तमान को दुरुस्त करना होगा। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता आज समय की जरूरत है। वन विभाग इस दिशा में कार्य कर रहा है और करनाल के गांवों में बढ़े स्तर पर पौधारोपण किया गया है ।

करनाल जिले में वन क्षेत्र के विस्तार के लिए विभाग ने और क्या-क्या कार्य किए हैं? डॉ. चौहान के इस सवाल पर नरेश रंगा ने बताया कि गांव की जमीन और सड़कों पर पेड़-पौधे लगाने के लिए एक ग्रीन बैंक तैयार किया गया है। करनाल शहर में प्रवेश से लेकर अंदर काफी दूरी तक सड़क के दोनों तरफ पेड़ और फूल वाले पौधे लगाए गए हैं। यहाँ पर पौधारोपण के एक सेगमेंट से दूसरे सेगमेंट की बीच की दूरी जो समान्यत: 4x 4 मीटर होती है उसे घटाकर 2×2 मीटर किया गया है, जिससे अपेक्षाकृत अधिक पेड़-पौधे लगाए जा सके। उन्होंने कहा कि पौधरोपण के लिए पर्याप्त जमीन नहीं मिलती। जमीन को लेकर किसानों से अक्सर संघर्ष चलता रहता है। पौधरोपण किए जाने के बाद किसान उसे आग लगाकर नष्ट कर देते हैं।

डॉ. चौहान ने रंगा से सहमति जताते हुए कहा कि करनाल जिले की ग्रामीण सड़कों पर पौधे लगाने के लिए ग्राम पंचायतों को ही पहल करनी होगी। यह आने वाली पीढ़ी के लिए अत्यंत आवश्यक है। किसानों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाना आवश्यक है। समाज और सरकार के बीच कड़ी बनना हमारा दायित्व है।

नरेश रंगा ने बताया कि विभाग के कर्मियों ने गांवों में घर-घर जाकर लोगों को करीब एक लाख पौधे बांटे और ग्रामीणों को प्रेरित किया कि खेत या बाड़े में जहां भी संभव हो, पौधे लगाएं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम 10 पौधे अवश्य लगाने चाहिए। रंगा ने जानकारी दी कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी स्कूली बच्चों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया था। इसके तहत करीब 1.25 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है।

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मुंह खुर की बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं, चारे में भी करें बदलाव: डॉ. चौहान

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पशुपालन से जुड़े प्रश्नों पर प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बृजेंद् से वेकअप करनाल में चर्चा

करनाल। गर्मी के मौसम में पशुओं में मुंह – खुर व गलघोंटू आदि बीमारियों का होना आम बात है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय से जुड़े किसान इससे बचाव के लिए अपने दुधारू पशुओं को इसका टीका अवश्य लगवाएं। अप्रैल और मई का महीना पशुओं के टीकाकरण का सबसे उपयुक्त समय है। इसके साथ ही उनके चारे में भी थोड़ा बदलाव करना जरूरी है। गर्मी आते ही हरे चारे की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में उनके चारे में दनीर या दाने की मात्रा बढ़ानी चाहिए। दाने में गेहूं और जौ की मात्रा बढ़ाना आवश्यक है। हरे चारे में मक्का लोबिया या ज्वार लोबिया को शामिल करना चाहिए।

उक्त जानकारी करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बृजेश मीणा ने दी। वह मंगलवार को रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम ‘वेकअप करनाल’ में पशुपालन, डेयरी व्यवसाय एवं पशुओं की देखभाल से जुड़े विषयों पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान से चर्चा कर रहे थे। इस दौरान पशुओं की नस्ल सुधारने से लेकर उनके रखरखाव तक कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।

डॉ. चौहान ने कहा कि पशुपालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधानों के लिए एनडीआरआई देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विख्यात है और यह लगातार चार वर्षों से देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शीर्ष स्थान पर है। उन्होंने पशुपालन और खेती के तौर तरीकों में निरंतर बदलाव करते रहने का सुझाव दिया।

एनडीआरआई के कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. मीणा ने बताया कि यह एक डीम्ड विश्वविद्यालय है जहां पशुपालन से जुड़े विभिन्न विषयों पर कोर्स करवाए जाते हैं और इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके लिए किसानों से फीस के तौर पर कुछ धनराशि भी ली जाती है। संस्थान में प्रशिक्षण के लिए रहने – खाने से लेकर अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध कराई जाती हैं।

डॉ. बृजेश मीणा ने बताया कि संकर प्रजाति के पशु तैयार करने और उनकी नस्ल सुधारने में एनडीआरआई का विश्व भर में नाम है। वर्ष 1991 में इस संस्थान ने विश्व का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बफेलो (भैंस) पैदा करने का श्रेय प्राप्त किया था। संस्थान की ओर से पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए अनुसंधान कार्य निरंतर जारी है। वर्ष 2008 में क्लोनिंग की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया और विश्व की पहली क्लोन भैंस भी यहीं तैयार की गई। संस्थान के निदेशक डॉ. एम एस चौहान के नेतृत्व में टीम ने क्लोनिंग पर अनुसंधान शुरू किया था।

डॉ. मीणा ने बताया कि एनडीआरआई की स्थापना 1 जुलाई 1923 को बेंगलुरु में हुई थी जिसे 1955 में करनाल मुख्यालय में स्थापित किया गया। यहां बीटेक, एमएससी और पीएचडी के कोर्स करवाए जाते हैं और कोर्स पूरा होते ही नौकरी मिल जाती है। संस्थान में करीब 25 कर्मचारी हैं और दो हजार के करीब उन्नत नस्ल की गाएं और भैंसें हैं।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने चर्चा के दौरान पशुओं के रखरखाव और उनके चारे से संबंधित सुझाव मांगे तो डॉ. मीणा ने बताया कि पशुओं को दाना और चारा चार-पांच भागों में बांट कर थोड़े-थोड़े अंतराल पर खिलाना चाहिए ताकि यह पशुओं को सुगमता से पच जाए। उन्हें तरल आहार पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए और इसके साथ ही 40 – 50 ग्राम मिनरल भी अवश्य देना चाहिए। इसके अलावा पशुओं को सीधी धूप से बचाकर ठंडे स्थानों पर बांधना चाहिए और ताजा पानी पिलाना चाहिए। पशुओं के बांधने की जगह ढलान जैसी हो।

डॉ. चौहान ने डॉ. मीणा से एनडीआरआई के सात दिवसीय कमर्शियल डेयरी फार्मिंग प्रशिक्षण के संबंध में जानकारी मांगी तो डॉ. मीणा ने बताया कि एनडीआरआई में एक बीपीटी यूनिट है जो किसानों को कमर्शियल डेयरी फार्मिंग का प्रशिक्षण देती है। इसके के लिए उनसे बतौर फीस ₹13000 लिए जाते हैं। एक बैच में करीब 25 किसान होते हैं।

डॉ. चौहान ने कहा कि उचित प्रशिक्षण लेकर पशुपालन को एक लाभ का व्यवसाय बनाया जा सकता है। इस पर डॉ. मीणा ने उनका समर्थन करते हुए कहा कि तीन साल के बाद पशुपालन के व्यवसाय में लाभ ही लाभ है।

कमर्शियल डेयरी फार्मिंग में कौन से पशुओं का पालन सबसे उपयुक्त है? डॉ. चौहान के इस सवाल पर डॉ. मीणा ने बताया कि गीर और थारपारकर अच्छी नस्ल की गायें हैं, लेकिन कमर्शियल पशुपालन के लिए काले – उजले रंग की कर्नफ्रीज नस्ल की गायें सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इस दौरान एचएफ बनाम साहीवाल नस्ल की गायों पर भी चर्चा हुई। डॉ. मीणा ने बताया कि गीर और साहिवाल नस्ल की गायों का ट्रेंड बढा है और उसकी कीमत भी बढ़ी है।

डॉ. मीणा ने कहा कि उचित समय आने पर गर्भाधान के लिए 16 से 18 घंटे के बीच पशुओं को एक टीका अवश्य लगाना चाहिए और यह कार्य कुशल डॉक्टर के हाथों करवाना ही उचित होगा। सीमेन का टीका लगाते समय अधिकतम 2 से 5 मिनट का समय लगना चाहिए।

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