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म्यूकोरमाइकोसिस से निपटने के लिए सरकार ने कसी कमर: डॉ. चौहान

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डॉ. भार्गव के अनुसार मधुमेह से ग्रस्त कोरोना रोगी फंगस के निशाने पर

वेक अप करनाल में वरिष्ठ प्रोफ़ेसर डॉक्टर आदित्य भार्गव के साथ...

करनाल। काले कवक या म्यूकोरमाइकोसिस मधुमेह के मरीज़ों को सर्वाधिक निशाना बना रहा है। पीजीआईएम रोहतक में उपचाराधीन ब्लैक फंगस के अब तक आए कुल संक्रमितों में 95 फ़ीसदी से ज्यादा मरीज़ डायबिटीज ये से ग्रस्त थे। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि जिन लोगों को मधुमेह न हो उनमें यह संक्रमण नहीं हो सकता। यह दुर्लभ बीमारी नहीं है और इसका शत-प्रतिशत उपचार संभव है। यह छुआछूत से फैलने वाली बीमारी भी नहीं है, इसलिए इसके रोगियों को कोरोना मरीजों की तरह आइसोलेट करने की जरूरत नहीं है।

यह जानकारी रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में पीजीआई रोहतक में ईएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आदित्य भार्गव ने दी। ब्लैक फंगस पर आयोजित चर्चा में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल इस बीमारी को अधिसूचित कर इससे निपटने के प्रति गंभीरता दिखाई है अपितु के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में इसके उपचार के लिए आरक्षित बेड तैयार रखे हैं। डॉ. भार्गव ने बताया कि यह संक्रमण नाइग्रा प्रजाति के फफूंद से फैलता है जो काले रंग का होता है। तेजी से फैलने वाला यह फंगस हवा में हर जगह मौजूद होता है और नाक की चमड़ी को संक्रमित कर उसे काला कर देता है। किसी भी व्यक्ति के नाक और गले में जीवाणुओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है, इसलिए यह अमूमन नाक के रास्ते से ही शरीर में प्रवेश करता है।

डॉ. चौहान ने पूछा कि जब यह फंगस हवा में हर जगह मौजूद होता है तो इसकी चर्चा कोरोना काल में ही क्यों होने लगी है ? डॉ. भार्गव ने बताया कि यह संक्रमण पहले भी होता था लेकिन इसके अत्यंत कम मामले सामने आते थे, जो नगण्य के बराबर थे। यह असामान्य बीमारी है और सिर्फ उन्ही लोगों को होती है जिनकी रोग अवरोधक क्षमता कम हो जाती है। कोरोना से ठीक हुए लोगों और डायबिटीज के मरीजों में संक्रमण अवरोधक क्षमता कम हो जाती है, इसलिए अब इसके ज्यादा मामले सामने आने लगे हैं। स्टेरॉइड का अनियंत्रित प्रयोग भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रवीण धनखड़ ने पूछा कि आम लोग इस संक्रमण के हो जाने पर इसके लक्षणों को कैसे पहचानें? इस पर डॉ. भार्गव ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद मरीज जब घर लौटे और उसे दोबारा बुखार आने लगे, नाक से गाढ़ा तरल पदार्थ बहने लगे, सिर में दर्द हो, दांत में संक्रमण हो जाए, तालू के ऊपर काला-काला सा पदार्थ जमने लगे और चेहरे में भी दर्द हो, तो इसे खतरे की घंटी समझना चाहिए और अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

इस संक्रमण को रोकने के उपायों पर डॉ. भार्गव ने कहा कि ब्लैक फंगस का संक्रमण रोकने के लिए नाक और मुंह की नियमित सफाई बहुत जरूरी है। इसके अलावा रात को सोते समय पानी में बीटाडीन दवा डालकर या गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करना भी फायदेमंद साबित होगा। इसके साथ ही भाप भी लेना जरूरी है। इस संक्रमण से बचने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि डायबिटीज को हमेशा नियंत्रण में रखें और समय-समय पर इसकी जांच करवाते रहें।

ब्लैक फंगस से संक्रमित होने वाले लोगों के बचने की संभावना कितनी होती है और इसका उपचार किस प्रकार किया जाता है? इस सवाल पर डॉ. आदित्य भार्गव ने बताया कि इस बीमारी का शत-प्रतिशत इलाज संभव है, लेकिन नाक से फैल कर यह संक्रमण यदि आंख और मस्तिष्क तक पहुंच गया तो परेशानी बढ़ सकती है। नेजल एंडोस्कोपी के माध्यम से इस बीमारी का पता लगाया जाता है और मास फंगस को हटाने के लिए एंडोस्कोपिक सर्जरी की जाती है।

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