ग्रामोदय

कबीर आज भी प्रासंगिक : डॉ. चौहान

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जयंती पर ग्रंथ अकादमी व रेडियो ग्रामोदय की ओर से दोहा पाठ का आयोजन

करनाल / पंचकुला । संत कबीर दास के कालखंड में विभिन्न सामाजिक विडंबनाएं मौजूद थीं। संत कबीर में अपनी रचनाओं के माध्यम से समकालीन सत्ता एवं व्यवस्थाओं को चुनौती देने का सामर्थ्य था और उन्होंने ऐसा ही किया। कबीर के कार्यों, चिंतन, व्यक्तित्व एवं उनकी रचनाओं में अध्यात्म की गहराई और ऊंचाई थी। उन्होंने निर्भीक होकर तत्कालीन सत्ताधीशों एवं शक्तिशाली वर्ग को चुनौती देने का काम किया। एक साहित्यकार से अपेक्षा भी यही होती है कि वह अपनी रचनाओं से सामाजिक विडंबनाओं एवं विकृतियों पर प्रहार करे। कवियों – साहित्यकारों पर अपने समाज को दिशा देने का भी दायित्व है। हर कवि के अंदर कबीर होने के तत्व मौजूद होते हैं। समाज को सचेत करने के लिए उस सामर्थ्य को जगाना होगा।

उपरोक्त विचार हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने संत कबीर दास की जयंती पर आयोजित दोहा पाठ के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों को हरियाणा ग्रंथ अकादमी की ओर से आभार प्रकट करते हुए उनसे अपने-अपने दौर का कबीर बनने का आह्वान किया और कहा कि कबीर बनने पर कोई रोक नहीं है।

ग्रंथ अकादमी और रेडियो ग्रामोदय के संयुक्त तत्वावधान मैं आयोजित इस दोहा पाठ का संचालन कवियित्री नीलम त्रिखा ने किया। उन्होंने कार्यक्रम की कमान संभालते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि कबीर दास एक बहुत बड़े समाज सुधारक और ईश्वर भक्त थे। उनके अंदर स्वाभिमान कूट- कूट कर भरा था। अपनी रचनाओं से उन्होंने मनुष्यों को सारे भेद मिटाकर मानव मात्र के लिए एकजुट हो जाने का संदेश दिया है। इस अवसर पर उन्होंने एक प्रेरक पंक्ति का भी उल्लेख किया — मात-पिता के हाथ ज्यूं, ज्यू बरगद की छांव
क्यों जन्नत को खोजता, जन्नत उनके पांव।

कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री मद्भागवत गीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के सातवीं कक्षा के छात्र यजुर कौशल के द्वारा संत कबीर के दोहों के सुमधुर सस्वर पाठ के साथ हुआ ।

दोहा पाठ की शुरुआत डॉ. अश्विनी शांडिल्य ने अपनी स्वरचित रचनाओं से की। उन्होंने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा, —

अथाह समुद्र है ज्ञान का, माणिक छिपे अनेक
क्या है तेरे काम का, गुरु बतलाए एक।
गुरु प्रकाश स्तंभ है, पथ को करें प्रशस्त
ज्योति ज्ञान की जल उठे, अंधकार हो पस्त।

उनके बाद चंडीगढ़ से जुड़ी संगीता शर्मा ने अपने भावों को कुछ यूं व्यक्त किया, –

श्याम बजाए बांसुरी, मन का यह चितचोर
प्रेम लगन की धुन बजी, नाचे मन का मोर।

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