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रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम ‘जय हो’ में सरस्वती नदी के ऐतिहासिक व वैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा
करनाल। पुराणों में वर्णित सरस्वती नदी कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि एक सच्चाई थी। इस नदी के मूर्त रूप में सतह के ऊपर बहने से लेकर इसके अंतर्ध्यान होकर भूगर्भ में प्रवाहित होने तक के अब पर्याप्त पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। वैदिक काल में सरस्वती नदी आदिबद्री के पास स्थित बंदर पुच्छ ग्लेशियर से अवतरित होकर राजस्थान की तरफ बहती थी। आदिबद्री सरस्वती का उद्गम स्थल है। इस नदी का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ता है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र जैसी भूमि का चयन सरस्वती नदी को ध्यान में रखकर ही किया गया था। मान्यता है कि यहीं पर भगवान ब्रह्मा ने सरस्वती नदी के किनारे ब्रह्म सरोवर की स्थापना की थी और सृष्टि की भी रचना की। महाभारत काल में हुई एक बड़ी भूगर्भीय हलचल के बाद सरस्वती का पानी सतह के नीचे चला गया जो आज तक भूगर्भ में ही बहता है। ओएनजीसी एवं इसरो की रिपोर्ट ने इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि की है।
उपरोक्त जानकारी रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम ‘जय हो’ में सरस्वती नदी के उद्गम एवं इसके अस्तित्व के पुरातात्विक साक्ष्यों पर चर्चा के दौरान सामने आई। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने इस महत्वपूर्ण विषय पर हरियाणा सरस्वती विरासत बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच के साथ विस्तार से बातचीत की। डॉ. चौहान ने कहा कि हरियाणा की मनोहर सरकार सरस्वती नदी के प्रवाह पथ को फिर से स्थापित करने एवं नदी को पुनर्जीवित करने के लिए कृतसंकल्प है। वर्ष 2015 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही हरियाणा सरस्वती विरासत बोर्ड का गठन किया जाना सरकार की इस उद्देश्य के प्रति गंभीरता को दर्शाता है। यह विरासत बोर्ड राज्य भर में जहां-तहां बिखरे सरस्वती नदी के अवशेषों को ढूंढ कर उसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत है।
डॉ. चौहान ने पूछा कि पौराणिक सरस्वती नदी की विरासत के तौर पर धरातल पर आज हमारे पास क्या-क्या मौजूद है? इस पर बोर्ड उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह ने बताया कि आदिबद्री से लेकर पंजाब की सीमा पर स्थित घग्गर नदी तक करीब 200 किलोमीटर क्षेत्र में सरस्वती बहती थी और वहां उस नदी में मिल जाती थी। 1911-1912 के राजस्व रिकॉर्ड और 1963-1964 में इस्तेमाल हुए राजस्व बंदोबस्त में इस क्षेत्र से होकर बहने वाली नदी के तौर पर सरस्वती का ही उल्लेख है। यह प्रमाण दस्तावेजों में आज भी मौजूद है। यमुनानगर के बिलासपुर, रादौर और लाडवा आदि ब्लॉक सरस्वती के प्रवाह पथ के किनारे स्थित हैं। अतिक्रमण व अन्य कारणों से प्रवाह पथ में कहीं-कहीं विचलन भी हुआ, लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में इसके पथ का उल्लेख आज भी मौजूद है। इसमें अब कोई संदेह नहीं कि सरस्वती नदी इन्हीं क्षेत्रों से होकर बहती थी। इसरो द्वारा उपग्रह से लिए गए चित्रों और ओएनजीसी द्वारा भूगर्भ में करीब 1600 फीट नीचे पैलियो चैनल से निकाला गया पानी सरस्वती नदी का अस्तित्व आज भी मौजूद होने की पुष्टि करते हैं। इसरो, ओएनजीसी की रिपोर्ट और राजस्व रिकॉर्ड में समानता है।
धुम्मन ने बताया कि सरस्वती का उद्गम स्थल आदिबद्री से ऊपर बंदरपुच्छ ग्लेशियर में माना जाता है जो गंगोत्री ग्लेशियर से भी ऊपर स्थित है। भगवान केदारनाथ और भगवान बद्री विशाल आदि बद्री में विराजमान हैं। मां सरस्वती भी वहां मौजूद हैं। मान्यता है कि भगवान शिव केदारनाथ जाने से पूर्व आदिबद्री आए थे और यहीं भगवान विष्णु से उनकी मुलाकात हुई थी। अरुणा गांव में अरुणा, वरुणा और सरस्वती का संगम हुआ था। यहां भगवान भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए थे। इस संगम स्थल पर भगवान शिव का एक अति प्राचीन मंदिर है जिसकी ऐतिहासिकता का पता लगाने के लिए पुरातत्व विभाग को लिखा गया है।
डॉ. चौहान ने कहा कि सिंधु घाटी की सभ्यता वास्तव में आर्य सभ्यता थी। इसके अब इतने पुरातात्विक साक्ष्य सामने आ चुके हैं कि अब इस सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहा जाने लगा है। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए धुम्मन सिंह ने कहा कि चतंग, मारकंडा आदि नदियां सरस्वती की ही शाखाएं हैं। किसी समय यमुना नदी भी सरस्वती नदी की डिस्ट्रीब्यूटरी थी। इसके प्रवाह का मार्ग अवरुद्ध हो जाने से अब बरसात में बाढ़ की समस्या उत्पन्न होने लगी है।
सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के अलावा हरियाणा सरस्वती विरासत बोर्ड और क्या-क्या कर रहा है? बोर्ड की भावी योजनाएं क्या हैं? डॉ. चौहान के इस सवाल पर धुम्मन ने कहा कि सरस्वती नदी के किनारे स्थित मंदिरों एवं घाटों का संरक्षण और उनकी देखभाल करना बोर्ड का मुख्य दायित्व है। आदिबद्री में जहां से पानी आता है, वह स्थान हरियाणा से आधा किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश में पड़ता है। वहां एक बड़े बांध का निर्माण प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल स्वयं इस प्रोजेक्ट की निगरानी करते हैं। डैम की शर्तें तय करने के लिए हिमाचल सरकार से भी निकट भविष्य में वार्ता होनी है। सरस्वती को धरती पर फिर से पुराने स्वरूप में लौटाने के मूल उद्देश्य से ही हरियाणा सरस्वती विरासत बोर्ड का 2015 में गठन हुआ था। आदिबद्री से आधा किलोमीटर आगे एक बैराज भी प्रस्तावित है। इन दोनों में सरस्वती नदी का पानी एकत्र किया जाएगा। इसके अलावा रामपुर, कंबोज और छिल्लो आदि तीन गांवों की पंचायत की करीब 350 एकड़ जमीन पर एक विशाल जलाशय के निर्माण की भी योजना है जिसे सरस्वती सरोवर के तौर पर विकसित किया जाएगा। मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि बांध, बैराज और सरोवर के तीनों प्रोजेक्ट वर्ष 2023 तक पूरे हो जाएं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पीपली को एक बड़े टूरिस्ट हब के तौर पर विकसित करने की तैयारी है। इसके अलावा पेवा और आदिबद्री को भी विकसित करने की योजना है। एक-डेढ़ साल के भीतर सभी परियोजनाओं के पटरी पर आने की उम्मीद है।
डॉ. चौहान ने पूछा कि कोरोना महामारी ने सरस्वती विरासत बोर्ड की विभिन्न परियोजनाओं के लिए निर्धारित वित्तीय प्रावधानों पर कितना असर डाला? इस पर विरासत बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन ने बताया कि वर्ष 2019 से लेकर 2021 तक हर साल सरस्वती महोत्सव मनाया गया है। वर्ष 2021 में 14, 15 और 16 फरवरी को सरस्वती महोत्सव जनता के सहयोग से भव्य तरीके से मनाया गया। कोरोना के मद्देनजर इस महोत्सव के लिए सरकार से एक पैसा भी नहीं लिया गया। इस अवसर पर एक बहुत बड़ा वेबीनार भी आयोजित किया गया था जिसमें विदेशी वैज्ञानिकों ने भी भाग लिया था। त्रिनिदाद के रोजर फेडरर भी इसमें सम्मिलित हुए और सोशल मीडिया पर करीब एक लाख लोग इससे जुड़े।
उन्होंने बताया कि अगले 15 दिनों के भीतर 160 किलोमीटर क्षेत्र की सफाई का काम संपन्न होगा। इस कार्य के लिए एक लाख मनरेगा मजदूरों को काम पर लगाया गया है जो कोरोना के कारण अपने घरों में खाली बैठे थे। अगले तीन-चार महीने में सरस्वती सरोवर के निर्माण का कार्य शुरू होगा। 8-10 एकड़ जमीन में छोटे-छोटे रिजर्वॉयर बनाने की योजना है जिनमें बरसाती पानी को संग्रह किया जाएगा। अगले 6 महीने के भीतर ही चीजें दिखने लगेंगी।